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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६८ २१२ समाजसेवा करने क्यों जाते हैं, जानते हो? वहाँ मान-सम्मान मिलता है! घर में मान-सम्मान कौन देगा? मान-सम्मान की इच्छा मनुष्य में प्रबल होती है न? __पहले तो कोई-कोई पुरुष अपने परिवारों के प्रति लापरवाह होते थे, महिलाएँ तो जाग्रत होती थीं अपने परिवारों के प्रति । परन्तु अंतिम दो दशक के समय में महिलाएँ भी बदलती जा रही हैं। वे भी परिवार के प्रति घोर उपेक्षा करती दिखायी देती हैं। उनको अपने परिवार की सेवा में गुलामी लगती है! क्लबों में, पार्टियों में, मंडलों में आजादी लगती है। क्या किया जाय? आप लोग कुछ समझें और सुधार करें तो अच्छा है। गतानुगतिकता छोड़नी होगी। अपने परिवार के प्रति दृष्टि बदलनी होगी। बहुत कुछ बिगड़ा है, फिर भी सुधार की शक्यता नष्ट नहीं हुई है। यदि पाँच-दस वर्ष बिना सुधार किये गुजर गये तब तो फिर सुधार की शक्यता नहीं रहेगी। परिवार को सुव्यवस्थित करने के लिए परिवार का इहलौकिक और पारलौकिक हित करने के लिए ग्रन्थकार आचार्यदेव ने कुछ उपाय बताये हैं | मुझे तो लगता है कि ये ही उपाय वास्तविक हैं। वर्तमानकाल में भी ये उपाय किये जा सकते हैं। परन्तु परिवर्तन करने में थोड़ी तकलीफें तो आयेंगी ही। तकलीफें सहन करके भी परिवर्तन करना होगा। परिवार के लिए बड़ों को कुछ त्याग भी करना होगा। हर एक के पास योग्य कार्य चाहिए : पहला उपाय बताया है : तस्य यथोचित विनियोगः। परिवार के हर व्यक्ति को उनके लिए योग्य कार्यों में जोड़ना चाहिए। कार्य दो प्रकार के होते हैं : धार्मिक और व्यावहारिक । ऐसे कार्यों में जोड़ना चाहिए कि उनको उन कार्यों में आनन्द आये । इसलिए परिवार के लोगों की अभिरुचि देखनी चाहिए। किसको कौन-सा कार्य पसन्द आयेगा....आता है, वह समझकर प्रेरणा देनी चाहिए | धर्मकार्य हो या व्यावहारिक हो, अभिरुचि देखकर प्रेरणा व मार्गदर्शन देना चाहिए | यदि उन लोगों के पास ऐसी कोई प्रवृत्ति नहीं होगी तो वे आवारा बन जायेंगे, जुआ खेलने चले जायेंगे। दूसरी अनेक अयोग्य प्रवृत्तियाँ उनके जीवन में प्रविष्ट हो जायेंगी। आज अनेक ऐसे श्रीमन्त परिवार हैं कि जिन परिवारों के लोग उचित कार्यों में लगे हुए नहीं हैं इसलिए अनेक बुरे काम कर रहे हैं। सभा में से : लड़कों को और लड़कियों को उनके उचित कार्य बताते हैं फिर For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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