SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 208
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६७ २०० अंगर्षि और रुद्रक : इस विषय पर अभी-अभी एक प्राचीन कहानी मैंने पढ़ी। बहुत हृदयस्पर्शी कहानी है। 'चंपा' नाम का नगर था। उस नगर में कौशिकार्य नाम के एक विद्वान् पंडित थे। उनके पास दो छात्र पढ़ते थे। वे दोनों रहते भी थे कौशिकार्य के आश्रम में ही। एक का नाम था अंगर्षि और दूसरे का नाम था रुद्रक । अंगर्षि जो था वह सौम्यमूर्ति था। प्रियभाषी था। न्यायी, विनीत और सरल था। रुद्रक का व्यक्तित्व अंगर्षि से बिलकुल भिन्न था। उपाध्याय जब अंगर्षि की प्रशंसा करते तब रुद्रक जलता था। अंगर्षि के दोष देखने में तत्पर रहता था.... परन्तु दोष दिखे तब न? ऐसे लोग अशान्त ही रहते हैं। व्याकुल और संतप्त ही रहते हैं। क्योंकि ये लोग सदैव अशुभ चिन्तन में....दूसरों के अहित के विचारों में उलझे हुए रहते हैं | गुणवानों की ईर्ष्या करना और उनको गिराने की प्रवृत्ति करना - यही उनका कार्य होता है। दूसरों का उत्कर्ष जो सहन नहीं कर सकते हैं, दूसरों की प्रशंसा जो सुन नहीं सकते हैं....ऐसे लोग दूसरों के उद्वेग में निमित्त बनते ही रहते हैं। रुद्रक का व्यक्तित्व ऐसा ही था। जबकि अंगर्षि गुणसमृद्ध छात्र था। उपाध्याय के प्रति संपूर्ण समर्पित छात्र था। एक दिन उपाध्याय कौशिकार्य ने प्रातः दोनों छात्रों को अपने पास बुलाकर कहा कि 'तुम जंगल में जाओ और ईन्धन ले कर आओ।' ___ अंगर्षि ने उपाध्याय की आज्ञा को आदर सहित स्वीकार किया और जंगल की ओर चल पड़ा। रुद्रक को उपाध्याय की आज्ञा पसन्द नहीं आयी.... परन्तु काम तो करना ही था! यदि इनकार कर दे तो उपाध्याय उसको निकाल दें अपने घर में से । वह भी घर से निकला.... परन्तु रास्ते में ही एक देवकुलिका में कुछ लोगों को जुआ खेलते देखा....और वह वहाँ जाकर बैठ गया। मध्याह्न होने तक वहाँ बैठा रहा। गुर्वाज्ञा को भूल गया! गुरु के प्रति बहुमान का भाव हो, तो गुर्वाज्ञा याद रहे न? उसके हृदय में गुरु के प्रति आदर ही नहीं था....! मध्याह्न के बाद गुर्वाज्ञा याद आयी। वह जंगल की तरफ चल पड़ा। उसने सामने से आते हुए अंगर्षि को देखा । अंगर्षि ईन्धन लेकर घर जा रहा था। रुद्रक को भय लगा। 'यह अंगर्षि उपाध्याय के पास मुझ से पहले पहुँच जायेगा और कह देगा कि रुद्रक तो अभी-अभी ही जंगल में जा रहा था....।' तो उपाध्याय मेरे प्रति रोषायमान होंगे? वह त्वरा से आगे बढ़ा। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy