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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६५ १८० आर्यरक्षित आदि मुनिवरों का अभिवादन किया। आर्यरक्षित को तो स्नेह से अपने बाहुपाश में जकड़ लिया। __ आर्यरक्षित श्री भद्रगुप्ताचार्यजी की सेवा में तत्पर बने । एक दिन भद्रगुप्ताचार्यजी समाधि में लीन बने और आर्यरक्षित का भविष्य देखा....उज्ज्वल भविष्य देखा। उन्होंने आर्यरक्षित को प्रेम से अपने पास बुलाकर, उसका हाथ अपने हाथ में लेकर कहा : प्रभावको भवानर्हच्छासनाम्भोधिकौस्तुभः । संघाधारश्च भावी, तदुपदेशं करोतु मे ।। 'हे वत्स, तू जिनशासन का प्रभावक बनेगा, संघ का आधारस्तंभ बनेगा.... इसलिए मेरे उपदेश का पालन करना। तुझे शेष पूर्यों का ज्ञान श्री वज्रस्वामी से प्राप्त करने का है।' आर्यरक्षित मुनि ने श्री भद्रगुप्ताचार्यजी के उत्संग में अपना मस्तक रख दिया। आचार्यदेव ने हार्दिक अनुग्रह बरसाया उन पर | कुछ समय के पश्चात् भद्रगुप्ताचार्यजी का स्वर्गवास हो गया। __ कैसे विशिष्ट ज्ञानी महापुरुष थे उस काल में! भद्रगुप्ताचार्यजी ने श्री आर्यरक्षित मुनि का भविष्य अपनी ज्ञानदृष्टि से जान लिया! अपना कैसा घोर दुर्भाग्य है कि वर्तमान काल में ऐसे विशिष्ट ज्ञानी महात्मा मिल नहीं रहे हैं। न रहा 'पूर्वो' का ज्ञान, न रहा योगबल और न रही ऐसी विशिष्ट आध्यात्मिक शक्ति....! जिनशासन के प्रमुख आचार्य ऐसे ज्ञान से, योगबल से और आध्यात्मिक शक्ति से तेजस्वी हो तो संसार के जीवों को मोक्षमार्ग की आराधना में विपुल संख्या में जोड़ सकें। विरोधियों को भी नतमस्तक कर सकें। स्व-पर जीवों का कल्याण कर सकें। श्रमण भगवान महावीरदेव की शासन-परंपरा में ऐसे प्रतिभा-संपन्न अनेक आचार्य हुए हैं। श्री वज्रस्वामी ऐसे ही महान् जैनाचार्य थे। उनके पास १० पूर्वो का ज्ञान था, 'आकाशगामिनी' और 'क्षीरास्रव' नाम की दो अपूर्व लब्धियाँ थीं, अद्भुत पुण्यप्रभाव था। आर्यरक्षित और वज्रस्वामी का हृदयंगम मिलन : ___ एक दिन वज्रस्वामी को स्वप्न आया : 'दूध से भरा हुआ पात्र कोई अतिथि आकर पी जाता है.....कुछ अंश में दूध पात्र में शेष रह जाता है।' वज्रस्वामी For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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