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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ६५ १७७ माता-पिता का मन प्रसन्न रहता है, सन्तानों के प्रति स्नेह बना रहता है । माता-पिता के मन को प्रसन्न रखना ही चाहिए । उपकार के भाव से माता-पिता की सेवा नहीं होती : सभा में से : कितना भी करें, परन्तु माता -- T-पिता को संतोष ही नहीं होता हो तो क्या करें? जितना करते हैं उतना उनको कम ही नजर आता है। महाराजश्री : यह शिकायत अर्धसत्य है ! या तो आपको जितनी सेवा करनी चाहिए उतनी करते नहीं होंगे। अथवा सेवा करते होंगे परन्तु जिस प्रकार करनी चाहिए उस प्रकार नहीं करते होंगे। या तो उनसे बातें करते होंगे तिरस्कार की भाषा में! इस प्रकार उनकी सेवा करते होंगे कि जैसे तुम उन पर उपकार करते हो । सेवा वैसे नहीं करने की होती है। माता-पिता की सेवा जितनी भी करें, कम ही है। कई बार वृद्धावस्था और रुग्णावस्था मनुष्य के स्वभाव पर असर करती है । स्वभाव कुछ क्रोधी और चिड़चिड़ा हो जाता है। हर बात में अपना अभिप्राय देने की आदत हो जाती है.... यह बात सन्तानों को पसन्द नहीं आती है और सन्तानें भी क्रोध एवं अपमान करने लगती हैं। सोचना तो यह चाहिए कि अवस्था की भी एक मजबूरी होती है । वृद्धावस्था से या रुग्णावस्था से मजबूर बने माता-पिता के प्रति तिरस्कार करना कहाँ तक उचित है? आप भी जब वृद्ध बनेंगे तब यदि दुर्भाग्य से स्वभाव बिगड़ गया तो क्या करेंगे? किसी के यानी माता - पिता एवं गुरु के क्रोधी स्वभाव को सहन करना समता से, यह एक बड़ी तपश्चर्या है । माता-पिता के साथ प्रेम से, नम्रता से और मृदु शब्दों से बात करें। संसार के कार्य उनसे पूछकर करें और धर्मपुरुषार्थ भी उनसे पूछकर करें। हालाँकि माता-पिता को भी कुछ तो समझना होगा ही। कोई विशेष नुकसान नहीं लगता हो तो तुरन्त ही अनुमति दे देनी चाहिए । हाँ - ना नहीं करना चाहिए । कभी मौन भी रहना चाहिए। गंभीरता, उदारता, सहिष्णुता और प्रेमसभरता - ये चार गुण माता-पिता में होने ही चाहिए तो ही सन्तानों का कर्तव्यमार्ग सरल हो सकता है। तीसरा प्रमुख कर्तव्य - जो कोई श्रेष्ठ वस्तु प्राप्त हो वह माता-पिता को देनी चाहिए। माता-पिता से कुछ छिपाना नहीं चाहिए। माता-पिता को वैसे उदार बनना चाहिए कि जो वस्तु लड़के-लड़कियाँ उनको भेंट करें, वह वस्तु For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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