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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७४ प्रवचन-६५ चाहती थी। फिर भी सुकोशल ने दीक्षा ले ली, तो माता का ममत्व द्वेष में बदल गया | माँ मरकर शेरनी बनी....सुकोशल मुनि को शेरनी माँ ने ही मार डाला। हालाँकि सुकोशल मुनि तो समता-समाधि में लीन बने और सर्व कर्मों का क्षय कर, मुक्तिमहल में चले गये....परन्तु अज्ञानी स्त्री-पुरुषों का रागममत्व सरलता से दूर नहीं होता है। इसलिए अज्ञानी-अबुध लोगों से स्नेह नहीं बाँधना चाहिए। प्रेम नहीं करना चाहिए। अज्ञानी के साथ किया हुआ प्रेम खतरे से खाली नहीं होता। आर्यरक्षित समझते थे कि राजा और स्नेही-स्वजन वगैरह ज्ञानी नहीं हैं। वे सन्मार्ग और उन्मार्ग को नहीं समझते । वे परधर्मसहिष्णु भी नहीं हैं। जैनधर्म के प्रति सद्भाव नहीं है। कभी वे आचार्यदेव पर घातक हमला भी कर दें। जिनशासन की बदनामी का निमित्त मत होना : दूसरी बात भी काफी महत्त्वपूर्ण कही गई है। 'जिनशासन की लघुता नहीं होनी चाहिए।' अज्ञानी जीव यदि दीक्षित आर्यरक्षित को वापस घर ले जायँ और जैनसाधुओं के साथ अभद्र व्यवहार करें तो जिनशासन की लघुता हो जाय, जो नहीं होनी चाहिए। जिनशासन का अभी आर्यरक्षित ने स्वीकार नहीं किया है, उस शासन के प्रति उनका अभिगम कितना अच्छा है। चूंकि उनको उसी जिनशासन में आना है। उसी जिनशासन के 'दृष्टिवाद' उनको पढ़ना है। भले, स्वयं का नुकसान होता हो, कभी स्वयं के संयमधर्म को भी क्षति पहुँचती हो, परन्तु जिनशासन की निन्दा....लघुता हो वैसी प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए। प्राण चले जायँ तो जायँ, परन्तु शासन-विराधना में तो निमित्त बनना ही नहीं चाहिए। जिस व्यक्ति में मौलिक गुणों की संपत्ति होती है, वही व्यक्ति वास्तव में महान् बनता है। वही व्यक्ति मोक्षमार्ग की आराधना करने में सक्षम बनता है। आर्यरक्षित में अनेक मौलिक गुण थे। माता-पिता की पूजा - यह असाधारण मौलिक गुण है। इस विषय में अभी बहुत कुछ कहना है। आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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