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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ६४ १७० उसके प्रति शुकन निर्देश करते हैं। शुकन भविष्य को बदलते नहीं हैं, भविष्य की सूचना देते हैं। शुकनों को समझने का ज्ञान होना चाहिए । शुकन का तो शास्त्र है। धार्मिक व्यवहारों में भी शुकन को महत्त्व दिया गया है। आर्यरक्षित इक्षुवाटिका में कि जहाँ आचार्यश्री तोसलीपुत्र विराजमान थे, वहाँ पहुँचे। उपाश्रय के द्वार पर वे रुक गये। उन्होंने सोचा : 'मुझे जैनाचार्य के पास जाना है....मैं जैन- शिष्टाचार नहीं जानता हूँ । बिना शिष्टाचार -पालन किये मुझे उपाश्रय में प्रवेश नहीं करना चाहिए ।' वे द्वार पर ही खड़े रहे। उपाश्रय में मुनिवृन्द शास्त्रस्वाध्याय में निमग्न था ! ऐसी शब्दध्वनि हो रही थी कि सारा वातावरण शब्दाद्वैतमय हो गया था । स्वाध्याय का प्रघोष आर्यरक्षित को बहुत ही कर्णप्रिय लगा। आर्यरक्षित खड़े-खड़े स्वाध्याय - ध्वनि सुनते ही थे, कि वहाँ एक श्रावक आया। उसका नाम था ' ढढ्ढर' | ढढ्ढर ने विधिपूर्वक उपाश्रय में प्रवेश किया, विधिपूर्वक आचार्यदेव को वंदन किया और दूसरे मुनिवरों को भी वंदन करके वह आचार्यदेव के पास बैठ गया। आर्यरक्षित ने सारी विधि जान ली। वंदन के सूत्र भी सुनकर याद कर लिये । अब उन्होंने उपाश्रय में प्रवेश किया विधिपूर्वक, वंदन किया विधिपूर्वक, परन्तु एक भूल कर दी उन्होंने और आचार्यदेव समझ गये कि 'यह आगन्तुक नया श्रावक है।' कहिये आर्यरक्षित ने कौन - सी भूल की होगी ? सभा में से : हम लोगों को भी विधिपूर्वक गुरुवंदना करना कहाँ आता है ? महाराजश्री : विधिपूर्वक गुरुवंदना करना नहीं आता, विधिपूर्वक परमात्मपूजन करना नहीं आता, विधिपूर्वक पच्चक्खाण करना नहीं आता.... तो आता क्या है? जो धर्मक्रिया करनी हो, विधिपूर्वक करनी चाहिए । अविधि से की हुई धर्मक्रिया फलवती नहीं होती है। इतना ही नहीं, कभी उसकी विपरीत प्रतिक्रिया भी आ सकती है। इसलिए हर धर्मक्रिया का विधि जान लेना चाहिए। ● गुरुवंदना की क्रिया की विधि 'गुरुवंदनभाष्य' में है । ● परमात्मपूजन की क्रिया की विधि 'चैत्यवंदनभाष्य' में है। ● पच्चक्खाण की क्रिया की विधि 'पच्चक्खाणभाष्य' में है । इन तीन भाष्यों का अध्ययन अवश्य करना चाहिए । अध्ययन करके विधिपूर्वक धर्मक्रियाएँ करनी चाहिए । विधिपूर्वक धर्मक्रिया करने से धर्मक्रिया में आनन्द मिलेगा। धर्म के प्रति अहोभाव बढ़ेगा। मन की स्थिरता बढ़ेगी । For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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