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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ६३ १६२ का पुण्य प्रभाव है कि ज्यों-ज्यों शिक्षा बढ़ती जाय त्यों-त्यों विनय एवं नम्रता भी बढ़ती जाय शिक्षा के साथ-साथ यदि अविनय और औद्धत्य बढ़ता जाय तो समझ लेना कि वह शिक्षा शिक्षा नहीं है, परन्तु कु - शिक्षा है .... कुत्सित शिक्षा है। आर्यरक्षित पाटलीपुत्र में पढ़कर आये थे । उस समय पाटलीपुत्र में विदेशों से छात्र पढ़ने आते थे। पाटलीपुत्र में पढ़ा हुआ विद्वान विश्व में माननीय माना जाता था। आर्यरक्षित वैसा अजोड़ विद्वान बनकर आया था । परन्तु जननी के चरणों में वह विद्वान नहीं था .... । माता के चरणों में तो वह विनीत पुत्र ही था । प्रेम-करुणा को न समझे वह विद्वान कैसा ? : 'मैं पढ़ा-लिखा हूँ और मेरी माँ अनपढ़ है.... ऐसी मान्यतावाले लोग वास्तव में अनपढ़ होते हैं। जो लोग प्रेम....करुणा.... वात्सल्य जैसे तत्त्वों को समझते नहीं, वे क्या विद्वान होते हैं? रुद्रसोमा ने कहा : ‘वत्स! तू 'दृष्टिवाद' पढ़े तो मुझे बहुत प्रसन्नता होगी।' आर्यरक्षित बोला : ‘दृष्टिवाद ?' कौन पढ़ायेगा मुझे यह दृष्टिवाद ! 'दृष्टिवाद' का नाम वह प्रथम बार ही सुन रहा था । 'दृष्टिवाद' नाम उसे पसन्द आ गया। उसकी आँखों में चमक आ गई, उसके मुँह पर प्रसन्नता छा गई। रुद्रसोमा पुत्र की मुखाकृति के भाव पढ़ रही थी । उसने कहा : 'बेटा, जैन-श्रमण जो कि महान् सत्त्वशील होते हैं, अब्रह्म और परिग्रह के त्यागी होते हैं, जिनके अन्तःकरण में परमार्थ - भावना भरी हुई होती है और जो ज्ञान के सागर होते हैं.... वे तुझे 'दृष्टिवाद' का अध्ययन करायेंगे। अभी इक्षुवाटिका में 'तोसलीपुत्र' नाम के ऐसे महान् जैनाचार्य बिराजमान हैं, जो तेरे मामा लगते हैं। वे तुझे अध्ययन करायेंगे। तू उनके पास चला जा, 'दृष्टिवाद' का अध्ययन कर.... .. मुझे बहुत खुशी होगी..... मेरी कुक्षी रत्नकुक्षी बन जायेगी ! ' आज कितनी माताओं को द्वादशांगी के नाम आते होंगे? बारह अंगों के नाम और विषयक्रम का ज्ञान कितनी माताओं को होगा ? रुद्रसोमा ने आर्यरक्षित को आचारांग या सूत्रकृतांग, स्थानांग .... वगैरह अंगों के नाम न लेते हुए बारहवें अंग : ‘दृष्टिवाद' का नाम लिया | क्यों? चूँकि आर्यरक्षित महान् पंडित बनकर आया था। उसके अनुरूप अति गंभीर ग्रन्थ का निर्देश करना चाहिए। रुद्रसोमा जानती थी कि ‘दृष्टिवाद' का अध्ययन जैनाचार्य गृहस्थों को नहीं करवाते हैं। 'दृष्टिवाद' का अध्ययन प्रज्ञावंत श्रमण ही कर सकता है । आर्यरक्षित जैन दीक्षा लेकर श्रमण बनेगा तो ही वह दृष्टिवाद का अध्ययन कर पाएगा ।' For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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