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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६३ १६० आत्महित सोचनेवाली थी। उसके तो संयोग भी प्रतिकूल थे। पुरोहित सोमदेव वेदान्ती थे और रुद्रसोमा जैनधर्मी थी। पति को नाराज किये बिना संतानों का आत्महित करना वह चाहती थी। काफी संयम और धैर्य से काम करना पड़ता है ऐसे संयोगों में। आर्यरक्षित वेदों का पारगामी बनकर दशपुर वापस लौट रहा है, यह समाचार सोमदेव ने राजा उदायन को दिया। राजा ने आर्यरक्षित का भव्य स्वागत करने का निर्णय किया। आर्यरक्षित को दशपुर के बाह्य प्रदेश में ठहराया गया। प्रभात में राजा हाथी पर बैठकर हजारों नगरजनों के साथ, आर्यरक्षित का स्वागत करने चला । आर्यरक्षित ने प्रथम पिता के चरणों में प्रणाम किया, बाद में राजा के चरणों में प्रणाम किया। राजा ने आर्यरक्षित को पुत्रवत् गले लगाया। हाथी पर बिठाया और नगरप्रवेश करवाया बड़ी धूमधाम से। पंडित बने हुए पुत्र को माँ ने आशीर्वाद क्यों नहीं दिया? आर्यरक्षित ने पिता के दर्शन किये, भाई और बहन को भी देखा, परन्तु माता को नहीं देखा | नगर के हर चौराहे पर....जहाँ ५०/१०० महिलाओं को देखता....अपनी माता को खोजता रहा। 'मेरी माँ क्यों नहीं दिखती है? वह क्यों नहीं आई?' उसके मन में अनेक प्रश्न उभरते रहे। राजसभा में से सीधा वह अपने घर पहुँचा। घर के द्वार पर भी माँ का दर्शन नहीं हुआ। 'माँ....माँ....माँ....' करता आर्यरक्षित घर में दौड़ा....माँ के कमरे में पहुँचा। माता रुद्रसोमा 'सामायिक' में लीन थी। आर्यरक्षित ने माता के चरणों में भावविह्वलता से प्रणाम किया....परन्तु रुद्रसोमा ने आशीर्वाद नहीं दिये। चूँकि वह सामायिक व्रत में थी। सामायिक व्रत में संसार की कोई भी प्रवृत्ति नहीं हो सकती है। पुत्र को आशीर्वाद देना-यह भी एक सांसारिक प्रवृत्ति ही है। रुद्रसोमा ने आशीर्वाद नहीं दिये। आर्यरक्षित उदास हो गया। वह अपने मन में सोचता है : ‘धिग् ममाधितशास्त्रौधं बह्वप्यवकरप्रभम् । येन मे जननी नैव परितोषमवापिता ।।' 'मैंने पढ़े हुए हजारों शास्त्रों को धिक्कार हो....क्या करना है मुझे उन शास्त्रों को कि जिससे मेरी माँ को संतोष न हो....? मुझे तो मेरी माँ को संतोष देना है, उसके मन को प्रसन्न करना है। मुझे ऐसा लगता है कि मैं पाटलीपुत्र में जो शास्त्राध्ययन करके आया हूँ, इससे मेरी माँ को संतोष नहीं हुआ है....।' For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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