SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 165
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६३ १५७ पारलौकिक हितदृष्टि से स्वयं जिये और परिवार को मार्गदर्शन देते रहें तो वे पूजनीय बनेंगे ही। ऐसा जीवन जीने पर भी यदि संतानें माता-पिता का आदर नहीं करती हैं और उनकी हितकारी बातों को भी नहीं सुनती है, तो मातापिता का कोई अपराध नहीं है, अपराधी बनेगी संतानें। __घर में छोटे-बड़े लड़के-लड़कियाँ हैं, लड़कों की बहुएँ हैं तो माता-पिता को एक विशेष खयाल करना होता है। घर में कोई भी नई वस्तु आये तो पहले संतानों को-बहुओं को देनी चाहिए। यह बहुत ही महत्त्व की बात बता रहा हूँ। वस्तु छोटी हो या बड़ी, अल्प मूल्य की हो या बहुमूल्य की हो, पहले वह वस्तु परिवार के सभ्यों को देनी चाहिए | माता-पिता को स्वयं उस वस्तु का उपभोग नहीं करना चाहिए। वस्त्र हो, अलंकार हो, भोजन हो....कोई भी वस्तु हो....पहले संतानों को दिया करो। माता भद्रादेवी का रोमहर्षक देशप्रेम : श्रमण भगवान महावीरस्वामी के समय की एक बहुत ही रोचक घटना है। नेपाल का एक रत्नकंबलों का व्यापारी व्यापार हेतु राजगृही नगरी में आया । मगध साम्राज्य की राजधानी राजगृही थी। राजा था श्रेणिक । रत्नकंबलें लेकर वह महाराजा श्रेणिक के पास गया । श्रेणिक ने रत्नकंबलें देखीं, व्यापारी ने रत्नकंबल के विशेष गुण बताये। रत्नकंबल सर्दियों में गर्मी देती है और गर्मियों में शीतलता देती है। 'हीटर' और 'कूलर' दोनों का काम करती है रत्नकंबल! राजा को रत्नकंबल पसन्द तो आ गई परन्तु मूल्य सुनकर लेने का विचार स्थगित कर दिया। एक रत्नकंबल का मूल्य था एक लाख रूपये। राजा ने खरीदने से इनकार कर दिया तो व्यापारी निराश होकर राजमहल से बाहर निकल गया। राजमार्ग से गुजर रहा था.... तब राजगृही की धनाढ्य सार्थवाही और शालिभद्र की माता भद्रा ने उस व्यापारी को अपनी हवेली के झरोखे से देखा। 'परदेशी व्यापारी क्यों निराश होकर जा रहा है?' भद्रा माता ने कुछ सोचा और परिचारिका को भेजा उस व्यापारी को बुलाने के लिए | व्यापारी आया । भद्रामाता ने पूछा : 'आप परदेशी व्यापारी दिखते हैं, कौन-सा माल है आपके पास? और क्यों निराश होकर जा रहे हो?' व्यापारी ने सारी बात भद्रामाता को कह सुनाई। भद्रामाता ने पूछा : 'आपके पास कितनी रत्नकंबलें हैं?' व्यापारी ने कहा : 'सोलह!' भद्रामाता ने For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy