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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ६२ १४८ इन चार गुणों से माता-पिता का उच्च व्यक्तित्व विकसित होता है । इन चार गुणों से विभूषित माता-पिता अपनी संतानों का सुन्दर जीवननिर्माण कर सकते हैं। स्व-पर का हित कर सकते हैं। श्रमण भगवान महावीरस्वामी के शासन में ऐसे अनेक गुणवान् माता-पिता हुए हैं कि जिन्होंने अपनी संतानों का परमहित किया और अपना भी आत्महित किया। आज मैं आपको ऐसे एक पुण्यशाली परिवार का परिचय दूँगा । एक ऐतिहासिक कहानी : मालव देश में दशपुर नगर था। राजा का नाम था उदायन । राजमान्य पुरोहित थे सोमदेव । पुरोहित पत्नी का नाम था रुद्रसोमा । मैं सोमदेव और रुद्रसोमा के परिवार की कहानी सुनाऊँगा । यह कोई कल्पित कहानी नहीं है, ऐतिहासिक सत्यकथा है। चौथे आरे की नहीं, पाँचवे आरे की कहानी है। बड़ी दिलचश्प कहानी है। यदि माता-पिता गुणवान् होते हैं, बुद्धिमान होते हैं तो संतानों के जीवन-विकास में, आत्म-विकास में कैसा भव्य योगदान देते हैं, यह बात यह कहानी बतायेगी । सोमदेव वैदिक-परंपरा को मान्य करनेवाले ब्राह्मण थे, परन्तु वे परधर्मसहिष्णु थे। रुद्रसोमा जैन - परंपरा को मान्य करनेवाली परम श्राविका थी । दोनों पतिपत्नी अपनी अपनी मान्यतानुसार धर्मानुष्ठान करते थे। अपने-अपने मंदिर जाते और अपने-अपने मंत्र का जाप करते । न कभी एक-दूसरे का खंडन, न कभी एक-दूसरे की आलोचना - प्रत्यालोचना । कितनी गंभीरता होगी ? कितनी उदारता होगी? प्यार के बादल बनकर बरसते रहो : सोमदेव राजमान्य पुरोहित थे । विद्वान थे । चार वेदों के ज्ञाता थे । फिर भी निराभिमानी और सरलपरिणामी थे । रुद्रसोमा जैन-दर्शन के नवतत्त्व और नयवाद की ज्ञाता थी परन्तु साथ-साथ वह प्रियवचना थी ! उसकी वाणी में मृदुता थी। वाणी में कभी आक्रोश नहीं, कठोरता नहीं! जीवन - सफलता की यह मास्टर की है । वाणी में से स्नेह की वर्षा होने दो! कोई कितना भी रोष उगले, उगलने दो, आप तो स्नेह की ही वर्षा करते रहो ! विजय आपकी ही होगी। रुद्रसोमा ने अपनी प्रिय वाणी से पति का हृदय जीत लिया था। पति के स्वभाव को जानकर वह पारिवारिक जीवन जी रही थी। हालाँकि सोमदेव रुद्रसोमा को 'नास्तिक', 'अज्ञानी' मानता था, परन्तु उसमें उग्रता नहीं थी For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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