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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १३६ प्रवचन-६१ करने लगे हैं। दुराचारों की प्रशंसा होने लगी हैं। दुराचारों का सेवन 'फैशन' बन गई हैं। जिनके साथ हम रहते हैं, जिनके साथ हमें घूमना-फिरना होता है, उनको कम्पनी' देनी पड़ती है....यदि कम्पनी' नहीं देते हैं तो हमारा घोर उपहास होता है, हम अकेले पड़ जाते हैं....।' गलत ढंग की दलील 'आरग्यूमेंट' किये जाते हैं। बात भी ठीक है। घोर उपहास सहन करना सरल बात तो नहीं है। प्रश्न : संतानों को कॉलेज में भेजते हैं तो संस्कार बिगड़ते हैं और कॉलेज में नहीं भेजते हैं तो लड़के के लिए आर्थिक समस्या और लड़की के लिए 'लड़के' की समस्या पैदा होती है। उत्तर : हर व्यक्ति का अपना भाग्य होता है, यह बात क्यों भूल जाते हो? हर व्यक्ति अपने शुभाशुभ कर्म लेकर जन्म लेता है। कॉलेज की शिक्षा नहीं पाई हो परन्तु किस्मत अच्छी होती है तो लखपति बन जाता है और किस्मत अच्छी नहीं होती तो 'डबल ग्रेज्युएट भी फुटपाथ पर सोता है। हालाँकि, पढ़ाई तो होनी चाहिए परन्तु ऐसी जगह पढ़ाई होनी चाहिए कि जहाँ संस्कार बिगड़े नहीं। लड़कियों को S.S.C. के बाद घर पर प्राइवेट ट्यूशन से भी पढ़ाया जा सकता है, यदि आर्थिक तकलीफ नहीं हो तो। आर्थिक संकट हो तो S.S.C. पढ़ ले तो भी बहुत है! पति की प्राप्ति तो भाग्यानुसार होती है। भाग्य के सिद्धान्त पर विश्वास होना चाहिए। मैं जानता हूँ कि यह बात मात्र माता-पिता के वश की नहीं रही है। लड़के और लड़कियाँ जब तक अपने संस्कारों को सुरक्षित रखने की बात नहीं समझेंगे तब तक सुधार होना मुमकिन नहीं है। दोषों को दोष तो मानने चाहिए न? गुणों का महत्त्व तो समझना चाहिए न? ऐसी बातों को समझाने वाली शिक्षापद्धति भी नहीं रही है। शिक्षा का अभिगम अर्थ और काम का बन गया है। बड़ी विकट समस्या पैदा हो गई है। गुणसमृद्ध व्यक्तित्व का मूल्यांकन आज के समाज में कितना और कैसा? सामाजिक विचारधारा भी बिगड़ी हुई है। व्यावहारिक शिक्षा अल्प हो परन्तु गुणसमृद्ध व्यक्तित्व हो, ऐसे व्यक्तियों का मूल्यांकन समाज में कितना और कैसा? गुणसमृद्धि नहीं है परन्तु व्यावहारिक शिक्षा ज्यादा हो और धनसमृद्धि भी ज्यादा हो....ऐसे व्यक्ति का समाज में मूल्यांकन कैसा और कितना? समाज में और गाँव में गुणवानों का मूल्यांकन नहीं होगा तो For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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