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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६१ १३४ धर्मों को जीवन में स्थान नहीं मिलेगा। और, जब तक ये धर्म जीवन में नहीं आते तब तक मोक्षमार्ग की आराधना करने की पात्रता नहीं आती! पात्रतायोग्यता प्राप्त नहीं हो तब तक धर्मपुरुषार्थ कैसे होगा? पात्रता प्राप्त किये बिना, किया हुआ धर्मपुरुषार्थ कोई विशेष महत्त्व नहीं रखता। गुणवान बनने के लिए सदाचारी का संग करो : ___ पन्द्रहवाँ सामान्य धर्म है : असदाचारी व्यक्ति का संसर्ग नहीं करना और सदाचारी जनों का संसर्ग करना। जीवन-व्यवहार में कितना उपयोगी है यह धर्म! ज्ञानी पुरूष कहते हैं कि संसर्ग से मनुष्य में गुण-दोष आते हैं। स्वेच्छाचारी लोगों के संसर्ग से दोष आते हैं, सदाचारी लोगों के संसर्ग से गुण आते हैं | दोषभरपूर होना है तो स्वेच्छाचारी लोगों से संपर्क करें, गुणवान् बनना है तो सदाचारी लोगों के संपर्क बनाये रखें। आपको आपका व्यक्तित्व कैसा बनाना है - पहले इस बात का निर्णय करें। सभा में से : हमें तो धनवान बनना है, गुण-दोषों से हमें कुछ लेना देना नहीं है! ___ महाराजश्री : यही बात मुझे कहनी है। मनुष्य कैसा भी हो, यदि उसके संपर्क से धनलाभ होता हो तो आप संपर्क करते हैं! व्यक्ति कैसा भी हो, आपको उसके संपर्क से सुख-भोग प्राप्त होता हो तो आप संपर्क करते हैं! गुण-दोष के विचार आप करते ही नहीं न? 'मुझे मेरे गुणों को खो देने नहीं हैं, मुझे नये गुण प्राप्त करने हैं, यह विचार आता है क्या? 'मुझे मेरे दोष दूर करने हैं, नये दोषों को जीवन में प्रवेश नहीं देना है, यह विचार आता है क्या? दोषों का निरीक्षण करो और उनका त्याग भी करो : दोषक्षय और गुणवृद्धि - ये दो आदर्श यदि आपके पास होंगे तो ही आप को इस पन्द्रहवें सामान्य धर्म का महत्त्व समझ में आएगा | मानवजीवन की सफलता इन दो आदर्शों पर निर्भर है। आत्मविशुद्धि तभी हो सकती है जब दोषों का नाश हो और गुणों की वृद्धि हो। जीवन की प्रसन्नता और पवित्रता भी तभी संभव है जब दोषों का क्षय हो और गुणों की वृद्धि हो। इसलिए मैं प्रतिदिन आपको यह बात कहता रहूँगा कि आप अपने दोषों का निरीक्षण करते रहें और एक-एक दोष को दूर करने का प्रयत्न करते रहें। धर्मक्रियाएँ For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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