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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२० प्रवचन-५९ केवल अर्थ और काम से शांति संभव नहीं है : __सभा में से : हम तो वैसे मित्र बनाते हैं कि जिनसे आर्थिक काम होता हो.... मौज-मजा करने को मिलता हो! ___ महाराजश्री : आप लोग अर्थ और काम में इतने आसक्त बने हो....कि पाप-पुण्य का भेद ही भूल गये हो। आत्मा को ही भूल गये हो। परन्तु एक बात मत भूलना कि मात्र अर्थ और काम से ही आपको सुख नहीं मिलेगा, शान्ति नहीं मिलेगी। वैभव-संपत्ति और रंग-राग ही जीवन नहीं है। प्रसन्न, उन्नत और प्रशान्त जीवन यदि चाहते हो तो सर्वप्रथम इन घोर पापों से जीवन को बचाना होगा। इसलिए पहले ही, यदि वैसे पापाचरण करनेवाले मित्र हों तो उनका त्याग कर दो। त्याग करने से थोड़ा बहुत आर्थिक नुकसान होता हो तो होने दो । विशेष आर्थिक लाभ चला जाता हो तो भी चले जाने दो | धनसंपत्ति से जीवन ज्यादा मूल्यवान है-यह बात मत भूलो। गलत मित्रता के कारण कई किशोरियों ने, युवतियों ने और महिलाओं ने भी अपना सतीत्वअपना शील खो दिया है। दुराचार के मार्ग पर चल रही हैं। पैसे का प्रलोभन और विषय-सुख की लंपटता! जीवन को नष्ट-भ्रष्ट करने में जरा भी देरी नहीं करते। मौज-मज़ा यह चिकनी सड़क है : __कुछ साल पूर्व एक ऐसी ही दुर्घटना जो कि सच्ची घटना थी, पढ़ने को मिली थी। एक परिवार था। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, फिर भी परिवार का गुजारा हो जाता था। परिवार में माता-पिता और दो संताने थीं। एक लड़का और एक लड़की थीं। दोनों कॉलेज में पढ़ते थे। लड़का सुशील था, सात्त्विक था, परन्तु लड़की का जीवन व्यतीत करने का ढंग दूसरा था । श्रीमंत सहेलियों के साथ घूमने से मौज-मजा करने की आदत पड़ गई थी। मौजमजा के लिये पैसे चाहिए! माता-पिता से तो पैसे मिल नहीं सकते थे। कैसे भी कर के पैसे प्राप्त करने की तीव्र इच्छा जाग्रत हुई। रास्ता भी मिल गया...शील बेचकर पैसा कमाने का पापमय रास्ता ले लिया। ___ एक कॉलेज-होस्टेल में जाने का था उस लड़की को। जिस लड़के के पास वह जानेवाली थी वह लड़का इस लड़की के भाई का खास मित्र था। परन्तु पहले उसको खयाल नहीं आया था कि 'यह लड़की मेरे मित्र की बहन है....' जब खयाल आया तब सावधान हो गया। उसने अपने मित्र को सारी बात बता For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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