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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५७ ९८ में अनावश्यक खर्च काफी ज्यादा हो रहा है। कुछ भी बचता नहीं है। परन्तु वह किसको समझाए? ससुर को उपदेश दे नहीं सकती और पति को कहने में भय था! 'शायद मेरी बात सुनकर नाराज हो जायें तो। कोई दूसरी कल्पना कर लें तो?' उसने दूसरा उपाय सोचा। अपने पति से कहा : 'आप दो साल के लिए अपनी सर्विस ट्रान्सफर क्यों नहीं करवा लेते? मुझे इस गाँव में अच्छा नहीं लगता....।' रोज रोज बड़े प्रेम से अपने पति को नौकरी का तबादला करा लेने को कहती रही और एक दिन तबादला हो गया। ससुर, ननद वगैरह कुछ नाराज भी हुए परन्तु नाराजगी सहन करके भी वे दोनों दूसरे शहर चले गये। एल. आई. सी. में नौकरी थी। महीने दो हजार रुपये मिलने लगे। पत्नी ने अच्छे ढंग से अपना घर बसाया और सजाया। दो-तीन महीने तक लड़के ने घर पर एक रुपया भी नहीं भेजा, तो घर से पत्र आया 'कुछ रुपये भेजो।' लड़का तो पूरे दो हजार रुपये पत्नी को दे देता था। उसने पिताजी का पत्र पत्नी को दिया। पत्नी ने कहा : 'मैं पिताजी को पत्र लिख देती हूँ।' उसने लिखा कि 'पिताजी को मालूम हो कि हमने यहाँ नया-नया घर बसाया है इसलिए सारे रुपये खर्च हो जाते हैं और संभव है कि आगे भी १०-१२ महीने तक यहाँ से रुपये भेज नहीं सकेंगे। क्षमा करें, वगैरह ।' बहुत नम्रता से और विनय से पत्र लिखा। 'बैन्क बेलेन्स' के अभाव में बाप का बुरा हाल : इधर लड़की की शादी करने का प्रसंग निकट आ रहा था। बैंक बेलेंस कुछ था नहीं। पिता को चिन्ता लग गई। 'लड़की की शादी कैसे करूँगा? मेरे पास तो १०० रूपये की भी बचत नहीं है और लड़के के पास भी बचत कैसी होगी? उसको तो नया घर ही बसाना है। शादी का क्या होगा? मेरी इज्जत कितनी बड़ी है? कम से कम दस हजार रुपये तो चाहिए ही। कहाँ से मिलेंगे रुपये?' चिन्ता बढ़ने लगी। शरीर पर उसका असर हुआ। उनकी पत्नी को और लड़की को भी चिन्ता सताने लगी। खर्च करने की जो आदत पड़ी हुई है वह छूटती नहीं थी। ऐसी परिस्थिति में भी खर्च कम नहीं होता है! लड़का एक रुपया भी भेजता नहीं है। पिता का स्वास्थ्य गिरने लगा। बारह महीने के बाद जब बहन ने भाई को लिखा कि 'तू जल्दी यहाँ आ जा, पिताजी का स्वास्थ्य अच्छा नहीं है।' पत्र मिलते ही दोनों गाड़ी में बैठे For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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