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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-५७ धनप्राप्ति को जो लोग भाग्याधीन नहीं मानते, यानी पुण्यकर्म के उदय से, पापकर्म के क्षय से धनप्राप्ति होती है, इस सिद्धान्त को जो लोग नहीं मानते उन लोगों ने पुरूषार्थ को ही सब कुछ मान लिया। 'जो करने से रुपये प्राप्त होते हों वह सब कुछ करना चाहिए,' ऐसा सिद्धान्त बना लिया। क्योंकि वे लोग पुण्य-पाप को मानते ही नहीं। हर प्रकार के उद्योग होने लगे। 'स्लोटर हाउस' का भी धंधा होने लगा! मांस के निर्यात का ठेका भी लोग लेने लगे। सरकार भी पाप-पुण्य के सिद्धान्त को नहीं मानती। बड़े-बड़े उद्योग सरकार के पास हैं। सरकार ने भी व्यय के अनुसार आय का सिद्धान्त अपनाया है। व्यय के अनुसार जब आय नहीं होती है तब विदेशों का कर्जा लेती है सरकार | विश्वबैंक से उधार रुपये लेती है सरकार | आज भारत पर कर्जे का इतना भार हो गया कि निकट भविष्य में इतना कर्जा चुकाना सरकार के लिए नामुमकिन है। देश की प्रजा पर 'टैक्स' बढ़ते जा रहे हैं। गरीबों को जीना भी मुश्किल हो गया है। जैसी स्थिति देश की हुई है वैसी स्थिति उन सभी परिवारों की हो सकती है, 'व्यय के अनुसार आय' का सिद्धान्त जो मानते हैं। 'मन चाहे उतना खर्च करते रहो और खर्च के अनुपात से व्यय बढ़ाने का पुरुषार्थ करो!' यह बात कितनी हास्यास्पद है? खर्च ज्यादा हो जाय और आय ज्यादा न हो तो कर्जा लिया करो! फिर क्या? कर्जा कर्जा ही होता है, दान नहीं होता। जब कर्जा चुकाने का समय पूर्ण हो जाय और कर्जा चुकाने के पैसे पास में न हों तब क्या करने का? या तो दिवाला निकाल दो, या आत्महत्या कर लो। तीसरा है कोई रास्ता? हो तो बता दें आप। और उन्होंने आत्महत्या कर ली : ___ बंबई में एक सद्गृहस्थ थे। गृहस्थजीवन में मेरे भी वे परिचित थे। भाग्य से उनके पास दो-तीन लाख रुपये हो गये। उदार प्रकृति के सदगृहस्थ थे। धार्मिक संस्थाओं में एक लाख रुपये का दान दिया, धार्मिक महोत्सवों में और अपने स्वयं के मकान बनवाने वगैरह में एक लाख रुपये खर्च कर दिये। सामाजिक प्रतिष्ठा बन गई। इधर आय बंद हो गई इतना ही नहीं, धंधे में नुकसान आने लगा। फिर भी वे अपनी इज्जत बनाये रखने के लिए दान देते रहे। अपना रहन-सहन इत्यादि वैसा का वैसा बनाये रक्खा | आय से व्यय बढ़ता गया। दूसरे लोगों के जो रुपये अमानत के रूप में उनके पास थे, वे भी खर्च हो गये। कर्जा काफी बढ़ गया। क्या करें अब? मरने के अलावा For Private And Personal Use Only
SR No.009631
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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