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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३२ ___९० तीन प्रकार : पाप नहीं करनेवालों के : दूसरी एक महत्त्वपूर्ण बात भी सुन लो । अन्याय-अनीति का मार्ग खतरे से खाली नहीं है। राज्य व्यवस्था में भी अन्याय-अनीति वर्ण्य है। अन्याय-अनीति करनेवाले अपराधी माने जाते हैं, यदि वे पकड़े जाते हैं तो सजा होती है, उनको जेल में जाना पड़ता है। उनकी बेइज्जती होती है। उनके परिवार को अनेक कष्ट सहन करने पड़ते हैं। राजदंड के भय से भी अन्याय-अनीति का मार्ग छोड़ना चाहिए। हालाँकि उत्तम पुरुष तो स्वभाव से ही ऐसे पाप नहीं करते हैं। पाप नहीं करनेवालों के भी तीन प्रकार बताये गये हैं। (१) राजदंड के भय से पाप नहीं करनेवाले, (२) परलोक के भय से पाप नहीं करनेवाले, (३) स्वभाव से ही पाप नहीं करनेवाले। राजदंड के भय से पाप नहीं करनेवाले अधम कक्षा के जीव होते हैं। परलोक के भय से पाप नहीं करनेवाले मध्यम कक्षा के जीव होते हैं और स्वभाव से ही पाप नहीं करनेवाले उत्तम कक्षा के जीव होते हैं। जिसको राजदंड का भी भय नहीं होता है और पाप करते हैं, उनको कौन-सी कक्षा में डालेंगे? सभा में से : अधमाधम कक्षा में! महाराजश्री : अच्छी कक्षा खोज निकाली! ऐसी निम्नतर कक्षा में जैन तो नहीं आ सकते न? आप लोग जैन हो न? जिनेश्वर के अनुयायी हो न? रागद्वेष को जिन्होंने जीत लिया वे जिनेश्वर और राग-द्वेष को जीतने का प्रयत्न करनेवाले जैन! चल रहा है न राग-द्वेष को जीतने का प्रयत्न? जैनत्व को कलंकित न करें : धन-संपत्ति का इतना लोभ तो नहीं ही होना चाहिए कि धन-संपत्ति पाने के लिए अन्याय-अनीति करनी पड़े | माया-कपट करना पड़े। इतनी आसक्ति नहीं होनी चाहिए | आप लोगों के स्वभाव में अनीति-अन्याय नहीं होने चाहिए | 'मैं जैन हूँ, जिनेश्वर परमात्मा का अनुयायी हूँ, मैं किसी हालत में अन्यायअनीति से धनोपार्जन नहीं कर सकता। यदि मैं अन्याय-अनीति करूँगा तो मेरा धर्म कलंकित होगा, मेरे निमित्त धर्म की निन्दा होगी।' ऐसे विचार आते For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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