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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३१ __७८ राजगृही का भिखारी : राजगृही नगर के उस भिखारी का उदाहरण आप जानते हो न? तीन दिन तक नगर में भिक्षा के लिए भटकने पर भी उसको भिक्षा नहीं मिली थी। क्या लोग खराब थे? क्या सारा नगर खराब था? क्यों लोगों ने उस भिखारी को भिक्षा नहीं दी? दूसरे भिखारियों को भिक्षा मिलती थी, लोग उनको देते थे भिक्षा, इसको क्यों नहीं देते थे? भिखारी को सभी नगरजनों के प्रति गुस्सा हो आया था, 'सभी लोग निकम्मे हैं....तीन तीन दिन से भटक रहा हूँ फिर भी रोटी का टुकड़ा भी नहीं देते हैं.... मेरी चले तो सभी को मार डालूँ....!' भिखारी को ज्ञान नहीं था कि 'मेरे पापकर्म का यानी लाभान्तराय कर्म का उदय है, इसलिए मुझे भिक्षा नहीं मिल रही है। जिस भिक्षुक का पापकर्म का उदय नहीं है उसको भिक्षा मिल रही है। लोग खराब नहीं हैं अपितु मेरे कर्म खराब है.... इसलिए लोगों के प्रति मुझे रोष नहीं करना चाहिए......।' अज्ञानदशा में उस भिक्षुक ने लोगों के प्रति तीव्र रोष किया, तीव्र रौद्रध्यान करने लगा। जब नगरवासी लोग एक दिन नगर के बाहर 'पिकनिक'-गोठ मनाने गये, वह भिक्षुक भी गया। उसने सोचा कि 'लोग जब घर से बाहर जाते हैं, ऐसी गोठं मनाते हैं.... तब कुछ उदार बन जाते हैं। याचक को दान दे देते हैं....।' भिखारी की धारणा बिलकुल गलत तो नहीं थी। आज भी कभी-कभी ऐसा देखने में आता है कि अपने घर पर कृपणता प्रदर्शित करनेवाले लोग जब तीर्थयात्रा करने अथवा पर्यटन करने निकलते हैं तब उनमें कुछ उदारता दिखाई देती है। परन्तु यदि याचक का घोर पापोदय होता है, तीव्र लाभान्तराय कर्म उदय में होता है तो याचना करने पर भी उसको कुछ नहीं मिलता । उदार मनुष्य भी उसको कुछ नहीं देता। ऐसे व्यक्ति के सामने आने पर उदार व्यक्ति के भी मनोभाव बदल जाते हैं। पूर्वग्रहबद्धता खतरनाक है : एक व्यक्ति ने मुझे कहा : 'महाराजश्री मैंने सुना था कि वे बड़े दानवीर हैं, उदार हैं। जो कोई उनके द्वार पर जाता है, खाली हाथ नहीं लौटता है। मैं भी गया उनके बंगले पर | मैंने अपनी आर्थिक परिस्थिति बतायी और कुछ सहायता करने की विनती की, परन्तु उन्होंने मुझे एक रूपया भी नहीं दिया। मैं खाली हाथ लौट आया। ऐसे लोग तो मात्र कीर्तिदान ही देते हैं... अपना नाम हो, वहाँ दान देते हैं | गरीब साधर्मिकों की सहायता करने में उनका नाम For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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