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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२९ होश आ गया। उसने कह दिया : 'हम सुखी हैं, मुझे ज्यादा धन नहीं चाहिए | आप कभी भी अन्याय-अनीति के रूपये नहीं लेना। आपकी नीति का धन ही मेरे मन लाखों रूपये बराबर हैं।' उस युवक को कितना आनन्द हुआ होगा? याद रखना, यह कोई काल्पनिक कहानी नहीं है। सत्य घटना है। यदि आप लोग कुछ समझो तो अच्छा है। परन्तु मेरे खयाल से आप दूसरा ही विचार करते होंगे। ___ सभा में से : आपका अनुमान सही है। हम लोग तो यह सोचते हैं कि ऐसे किसी एकाध व्यक्ति के जीवन में किस्सा बन गया होगा, हम लोगों को ऐसा कोई अनुभव नहीं हुआ है। महाराजश्री : इसका अर्थ यह है कि आपको अनुभव होगा तभी आप अन्याय-अनीति छोड़ेंगे? मेरा खयाल तो यह है कि आपको इससे भी ज्यादा कटु अनुभव होंगे तो भी आप अन्याय-अनीति का मार्ग नहीं छोड़ेंगे। जब तक अन्याय से रूपये मिलते रहेंगे, अनीति से धन मिलता रहेगा, तब तक आप न्याय-नीति की बात नहीं मानेंगे। दूसरों के अनुभव से आप सबक नहीं लेंगे। ठीक है, होने दो वैसे विनाशकारी अनुभव आपको स्वयं को। तब तक करते रहो अन्याय और अनीति | ज्यादा क्या कहूँ आप लोगों को? पापानुबंधी पुण्य का उदय : संभव है कि प्रबल पापानुबन्धी पुण्य का उदय हो तो अन्यायोपार्जित द्रव्य जीवनपर्यंत नष्ट न हों, जीवनपर्यंत बना रहे, फिर भी उसके भयानक परिणाम भवांतर में भोगने पड़ेंगे ही अवश्यमेव! प्रबल पापानुबंधी पुण्य के उदय में मेरी बात आपके गले नहीं उतरेगी....चूँकि पापानुबंधी पुण्य का उदय मनुष्य की बुद्धि को मलिन कर देता है। मलिन बुद्धि में ज्ञानी पुरुषों की बात उतर नहीं सकती। सच्ची और अच्छी बात भी निर्मल बुद्धि में ही उतर सकती। पापानुबंधी पुण्य ने आजकल ज्यादातर लोगों की बुद्धि मलिन कर डाली है। द्रौपदी एवं भीष्म पितामह का रोचक संवाद : महाभारत की एक रोचक कहानी है। शरशय्या पर सोये हुए भीष्म पितामह पांडवों को उपदेश दे रहे थे। द्रौपदी भी वहाँ खड़ी थी। द्रौपदी को हंसी आ गई। भीष्म ने पूछा : 'बेटी, हँसने का क्या कारण है? द्रौपदीने कहा : 'ऐसा कोई कारण नहीं है।' भीष्म ने कहा 'नहीं बेटी, जो भी कारण हो, तू बता दे ।' For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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