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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२९ ___ ५२ अनीति का धन : घर के नीचे गाड़ी हुई हड्डी-सा : ___ ग्रन्थकार आचार्यश्री मात्र धर्मग्रन्थों के ही विद्वान नहीं थे, वे मानवजीवन को स्पर्श करने वाले दूसरे भी अन्य ग्रन्थों के भी विद्वान थे! उन्होंने अन्यायोपार्जित धन-सम्पत्ति का तत्काल विनाश बताया है-एक बहुत ही अच्छा-सा उदाहरण देकर | उन्होंने कहा है कि जैसे जमीन में हड्डियाँ वगैरह शल्य हों और उस पर गृह बनाया जाय तो उस घर में रहनेवालों का अहित होता है, अशुभअमंगल होता है वैसे अन्यायोपार्जित धन-सम्पत्ति का अहित होता है या उसकी सम्पत्ति नष्ट हो जाती है। ___ मैंने भी एक शहर में देखा था, एक मकान ऐसा था कि उसमें जो-जो व्यक्ति रहने जाते, उस परिवार में से किसी की मृत्यु अवश्य हो जाती! तीन परिवारों में ऐसी ही घटना घटी। बाद में जब एक व्यक्ति ने उस मकान को खरीदकर गिरा दिया, पुराना था वह मकान, गिरा कर जब फिर से नया मकान बनाना शुरू किया, जमीन को खोदा तो उसमें से बहुत सी पुरानी हड्डियाँ निकलीं। उन दुर्घटनाओं का कारण लोगों की समझ में आ गया। जमीन का भी असर होता है : मकान बनाने में क्षेत्रशुद्धि होना अति आवश्यक है। अशुद्ध भूमि पर बने हुए मकानों में रहने वाले लोग दुःख पाते हैं। भूमिशुद्धि के लिए अपने देश में भूमिपूजन किया जाता है। जहाँ मकान का निर्माण करना होता है, उस भूमि का पूजन किया जाता है। परन्तु आजकल बड़ी गड़बड़ियाँ चालू हो गई हैं। जहाँ जमीन मिलती हो, वहाँ मकान बनाये जा रहे हैं। श्मशान भूमि यदि बिकती है तो उसे लेकर उस पर भी मकान बनाये जाते हैं! ऐसे मकानों में रहने वालों को सुख शान्ति नहीं मिल सकती। क्षेत्र के भी अपने प्रभाव होते हैं। निश्चित रूप से होते हैं। एक ही व्यक्ति एक गाँव में भीख माँगता फिरता है, दुर्भाग्य का शिकार बना हुआ होता है, वही व्यक्ति दूसरे गाँव में जाकर श्रीमंत बन जाता है! उसके सौभाग्य का चन्द्र प्रकाशित हो जाता है! क्षेत्र का भी प्रभाव होता है और कुछ पुण्यकर्म और पापकर्म ऐसे होते हैं जो क्षेत्र के माध्यम से उदय में आते हैं। कुछ पुण्यकर्म और पापकर्म ऐसे होते हैं जो काल के माध्यम से उदय में आते हैं! अन्याय से अर्थोपार्जन मत करो। आप मुझे बताइये कि आप अर्थोपार्जन किसलिए करते हैं? सुख पाने के लिए न? यदि अर्थोपार्जन करने पर भी, For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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