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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२८ ४४ परन्तु दुःख सहन करना पड़े वैसी धर्मआराधना नहीं करनी है। आराम से... मजे से... जितना धर्म हो सके उतना करना है, कष्ट पड़े, दुःख सहन करना पड़े वैसा धर्म आपको पसन्द है क्या? स्वेच्छा से दुःख सहन करोगे तभी पापकर्मों का नाश होगा। जरा भी आर्तध्यान किये बिना, समता से यदि दुःख सहन किये जाएँ तो आत्मा पर लगे हुए अनन्त जन्मों के पापों की निर्जरा हो जाए | जानते हो न कि श्रमण भगवान महावीर ने साढ़े बारह वर्ष तक घोर कष्ट जानबूझ कर सहन किये थे? मोक्ष ऐसे आराम करने से, मौजमजा करने से नहीं मिलेगा। मोक्ष का माल चाहिए तो दुःखों की मार सहर्ष खानी पड़ेगी। यदि मोक्ष में जाना है तो! मुक्ति पाना है तो! संसार की गतियों में ही भटकना है तो माल खाया करो! और मार भी खाया करो। जो मानवजीवन में वैषयिक सुखों का भोग-उपभोग करता रहता है, वैषयिक सुखों का त्याग नहीं करता है, उसको दुर्गति में जाना पड़ता है और इच्छा नहीं होने पर भी दुःख सहन करने पड़ते हैं। हमें अपने पुण्यकर्म के उदय से सुख मिले हैं तो क्यों नहीं भोगे? मन में प्रश्न उठता है न? परन्तु यही अज्ञानता है। मिले हुए सुख भोगने से पुनः-पुनः भोगने से, पुण्यकर्म समाप्त हो जाता है और जीवात्मा को, पुण्यहीन जीवात्मा को दुर्गति में जाना पड़ता है। प्राप्त सुखों का त्याग करने से पुण्यकर्म बढ़ता है और जीवात्मा को सद्गति प्राप्त होती है, वहाँ जीवात्मा को विपुल सुख-वैभव प्राप्त होते हैं। इसलिए कहता हूँ कि जो सुख आपको मिले हैं उन सुखों में आसक्त मत बनो, सुखभोग में लीन मत बनो। सुखों का त्याग करने के लिए तत्पर बनो। लक्ष्मीदास का धन गया : सेठ धन-माल बचाने के लिए तत्पर बना है और ठग सेठ का धन-माल किसी भी प्रकार हड़पने के लिए तत्पर बना है। जब लड़के ने खून से सनी हुई छुरी पिता के हाथ में थमाते हुए कहा : 'मैंने उसकी नाक काट डाली तो भी वह हिला नहीं, चिल्लाया नहीं, वह मर गया है, आप शंका नहीं करें।' सेठ को विश्वास हो गया। खड्डे को मिट्टी और पत्थरों से भरकर, निशानी लगा कर, बाप-बेटे वहाँ से अपने घर लौट गये। कुछ समय बाद वह ठग खड़ा हुआ, पास में उगी हुई वनस्पति का रस निकालकर अपनी नाक पर लगा दिया। बहता हुआ खून बन्द हो गया। वह धीरे से उस खड्डे के पास गया। मिट्टी और पत्थर खोद कर उसने उस डिब्बे को बाहर निकाला और कपड़े में लपेट कर सीधा अपने घर पर पहुँच गया । For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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