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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- २८ ४१ 'सब लोग बेईमानी करते हैं इसलिए हम भी करते हैं.... आजकल बेईमानी किये बिना नहीं चल सकता.... सब धंधे .... सब व्यवसाय ऐसे ही हो गये हैं..... भ्रष्टाचार व्यापक बन गया है....!' ऐसा सोचते हैं और निश्चिंत होकर भ्रष्टाचार करते रहते हैं । यदि समाज में और संघ में नैतिकता का मूल्यांकन नहीं होगा, धार्मिकता का अभिनंदन नहीं होगा तो सामान्य बुद्धिवाले लोग नैतिकता और धार्मिकता की ओर आकृष्ट नहीं होंगे। संघ और समाज यदि धनवानों की प्रशंसा करेगा, धनवानों का अभिवादन करता रहेगा तो सामान्य मनुष्य धन-संपत्ति के प्रति ही आकृष्ट होगा। धन की कामना से भी मान की वासना ज्यादा प्रबल होती है। मनुष्य संघ- समाज में मान-सम्मान-प्रतिष्ठा चाहता है। जैसा बनने से, जैसा करने से संघ समाज में मान-सम्मान मिलता हो, वैसा बनने और वैसा करने को प्रयत्नशील बना रहता है । आजकल बेईमान धनवानों को भी संघ समाज में मान-सम्मान मिलता है, इसलिए सामान्य मनुष्य बेईमानी करते हिचकिचाता नहीं है । प्राचीनकाल में बेईमानी नहीं थी, ऐसी बात नहीं है, कुछ लोग जैसे बेईमान होते थे, वैसे कुछ लोग ईमानदार भी होते थे। आजकल तो ईमानदार को खोजने निकलना पड़ेगा! कोई लाख में एकाध मिल जाए तो भाग्य ! शहर में लक्ष्मीदास जैसे बेईमान लोग थे, वैसे ईमानदार लोग भी थे उस शहर में। ईमानदारों की शहर में प्रतिष्ठा थी, राजा भी ऐसे ईमानदारों की इज्जत करता था । लक्ष्मीदास ने अपनी संपत्ति की सुरक्षा का विचार किया। उस जमाने में बैंकें नहीं थीं, 'सेफ डिपोजिट वाल्ट' नहीं थे। लोग धन को जमीन में गाड़ते थे। लक्ष्मीदास ने भी अपने धन को जमीन में गाड़ने का सोचा। उसने दो लाख रूपये का जौहरात खरीद लिया और एक डिब्बे में भरकर 'सील' लगा दिया । एक दिन अपने लड़के से कहा : 'बेटा, सारी जिंदगी मेहनत करके मैंने जो धन एकत्र किया है, तेरे लिए मैं उस धन को सुरक्षित रखना चाहता हूँ । इसलिए आज रात को हम श्मशान में जाकर उस धन को जमीन में गाड़ देंगे। भविष्य में यह धन तेरे काम आयेगा ।' लड़के ने सारी बात सुन ली । संध्या हो गई। नगर में अंधेरा छा गया तब लक्ष्मीदास लड़के को साथ लेकर धन-माल बगल में छिपाता हुआ निकल पड़ा। चारों ओर उन्होंने देख लिया था कि कोई उनको देख तो नहीं रहा है। उनको मालूम नहीं पड़ा कि नगर का एक कुख्यात ठग उनके पीछे हो गया था। जब बाप-बेटे श्मशान पहुँचे, एक पेड़ के पीछे वह छिप गया । श्मशान में अंधेरा था, फिर भी ठग For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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