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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 39 प्रवचन-२७ और उसने कुलपरंपरा का जीव वध का धंधा छोड़ दिया। अभयकुमार ने सुलस को ज्ञानदृष्टि दी। कुलपरंपरा का धंधा यदि निंदनीय है, गलत है, पापमय है तो तत्काल छोड़ देना चाहिए | अनिंदनीय और निष्पाप धंधा हो तो चालू रखना चाहिए। ___ सभा में से : यदि आप कहते हैं वैसा अच्छा निष्पाप व्यवसाय नहीं मिले तो क्या करना चाहिए? ___ महाराजश्री : ऐसा नहीं हो सकता। कोई न कोई अनिंदनीय व्यवसाय या नौकरी मिल ही जाती है। थोड़ा सा धैर्य होना चाहिए। तृष्णा कम होनी चाहिए। इच्छाओं पर नियंत्रण होना चाहिए। ___ वास्तव में देखा जाय तो मनुष्य परिश्रम को नापसंद करता जा रहा है। जिस 'बिजनेस' में, जिस व्यवसाय में कम परिश्रम हो, वह व्यवसाय आज का युवक ज्यादा पसंद करता है। कुर्सी पर बैठकर 'टेबलवर्क' करने की नौकरी विशेषकर पसंद की जाती है। भले तनख्वाह कम मिलती हो, रिश्वत लेकर ज्यादा 'इनकम' कर लेते हैं। सरकारी नौकरी में भ्रष्टाचार कितना व्यापक बन गया है, आप लोग अच्छी तरह जानते हो। महीने हजार-दो हजार की तनख्वाह पाने वाले नौकर भी रिश्वत लेते हैं और प्यून-चपरासी भी रिश्वत लेता है! रिश्वत लेना और रिश्वत देना-दोनों बड़े पाप हैं, परन्तु आप लोगों को पापों का भय है कहाँ? यदि मनचाहा धन मिलता है तो पाप करने में आपको किसी प्रकार का क्षोभ नहीं है। सच बात यह है न? परंतु आप याद रखें कि गलत और निंदनीय धंधा करके कमाया हुआ धन आपके पास दीर्घ समय तक टिकेगा नहीं और उपार्जित किये हुए पाप आपके साथ परलोक चलेंगे। जब वे पापकर्म उदय में आयेंगे तब कितने भयानक दुःख आप पर गिरेंगे, उसका विचार करें। गंभीरता से विचार करें। अर्थव्यवस्था की पद्धति : तीसरी बात है व्यापार में अर्थव्यवस्था की पद्धति । आपके पास जितनी द्रव्यराशि हो, उसीके अनुसार व्यापार करना चाहिए। व्यापार है, कभी नुकसान भी होता है। यदि आपने दूसरे लोगों से रूपये लाकर..... व्याज से रूपये लाकर व्यापार किया हो और व्यापार में, नुकसान हो जाए तो क्या होगा? डूब जाओगे न? जिन-जिन से रूपये लाये हो, उनको क्या दोगे? For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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