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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४७ २७४ 'चक्र' आयुधशाला में प्रविष्ट नहीं होगा, ऐसा हमें लगता है।' भरत को महामंत्री की बात ठीक लगी। उन्होंने तुरन्त ९९ भाइयों के पास अपने दूत रवाना किये और संदेश भेजा कि 'तुम मेरे आज्ञांकित राजा बन जाओ।' दूत भरत का संदेश लेकर ९९ भाइयों के पास पहुँचे। संदेश दिया। बाहुबली ने तो दूत को धुतकार दिया। शेष ९८ भाई भी भरत का संदेश सुनकर रोषायमान हो गये। ___९८ भाई एकत्र हुए और भरत के संदेश पर विचार-विमर्श किया। किसी को भी भरत की बात अच्छी नहीं लगी। 'जब पिताजी ने हम सभी को स्वतन्त्र राज्य दिया है तब भरत कैसे हम सबका मालिक बनने की इच्छा करता है? भरत हमारा ज्येष्ठ भ्राता है, हम उनका आदर करते हैं, परन्तु इसका अर्थ यह तो नहीं होता कि वह हमारे राज्य का मालिक बन जाये, वह हम पर अधिकार स्थापित करे। हमें उसे याद दिलानी चाहिए कि पिताजी ने हम सबको स्वतन्त्र राज्य दिया है, तुम अपना राज्य करो, हम हमारा राज्य करें।' ९८ भाइयों ने भरत के दूत को संदेश देकर वापस भेजा। परन्तु भरत नहीं माना, तब ९८ भाइयों ने मिलकर भरत से लड़ लेने का निर्णय किया। भाईभाई के मधुर संबंध को तोड़ने के लिए ये सभी तैयार हो गये। राज्य का लोभ! लोभ है आन्तरिकशत्रु! भरत को था चक्रवर्ती बनने का लोभ और ९८ भाइयों को था अपने-अपने राज्य का लोभ! लोभ सभी पापों का बाप होता है! लोभ में से अनेक पाप पैदा होते हैं। अनेक दोष पैदा होते हैं। जब ९८ भाइयों ने भरत की अधीनता स्वीकार नहीं की, तब भरत गुस्से हो गया। क्रोध से आगबबूला हो गया । ९८ भाइयों के साथ युद्ध करने को तैयार हो गया। दूसरी ओर, ९८ भाई भी भरत के अन्याय को देखकर अत्यन्त क्रुद्ध हो गये। सभा में से : अन्याय के प्रति तो आक्रोश होना चाहिए न? महाराजश्री : आक्रोश होना चाहिए आन्तरिक शत्रुओं के प्रति! न्याय और अन्याय तो मनुष्य के पुण्यकर्म और पापकर्म पर निर्भर होते हैं। यदि ९८ भाइयों के हृदय में राज्य का लोभ नहीं होता, राज्य की आसक्ति नहीं होती तो भरत अन्यायी नहीं लगता! 'भरत बड़ा भाई है, उसको चक्रवर्ती होना है, तो चलें, उसकी आज्ञा मान लें! अपना राज्य रहेगा तो अपने ही पास, मात्र मालिक कहलायेगा भरत....बड़ा भाई है....मालिक कहलायेगा तो दुनिया में बुरा नहीं लगेगा....परन्तु इस बात को लेकर भरत से लड़ना नहीं है। भगवान ऋषभदेव के पुत्र यदि आपस में लड़ेंगे तो दुनिया में अपयश फैलेगा।' ऐसा वे For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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