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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४६ २६१ ब. गुणों की प्राप्ति एवं प्राप्त हुए गुणों की स्थिरता जीवन में तब ही जाकर संभवित होगी जबकि आदमी अपनी इन्द्रियों का गुलाम न बने। इन्द्रियों की परवशता से दूर रहे। काम-क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष-ये छह अपने भीतर में घुसकर बैठे हुए शत्रु हैं। इन शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना होगा। इन्हें भीतर से खदेड़ना होगा। . इन्द्रियविजेता व्यक्ति आत्मसुख की जो अनुभूति करता है...इन्द्रियविवश व्यक्ति उस सुख की कल्पना भी नहीं कर सकता! . इन्द्रियपरवश जीवात्मा जिस दुःख-अशांति से घिर जाता है, इन्द्रियविजेता को उस दुःख की छाया भी छू नहीं सकती! . औरों पर विजय पाना सरल है, अपने आप पर काबू पाना कठिन तो है, पर पाना ही होगा। क प्रवचन : ४७ परम कृपानिधि महान् श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रन्थ में, गृहस्थजीवन के सामान्य धर्म का प्रतिपादन करते हुए ३५ गुणों का निर्देश करते हैं। किसी भी विशेष धर्म का पालनआराधना करने से पहले इन गुणों का अर्जन-आराधना करना अति आवश्यक है | कुछ गुण हैं व्यवहारशुद्धि के और कुछ गुण हैं विचारशुद्धि के । __ गुणों की प्राप्ति और प्राप्त गुणों की जीवन में अवस्थिति, तभी सहज और स्वाभाविक हो सकती है जब मनुष्य अपनी इन्द्रियों का विजेता हो। यानी जो मनुष्य इन्द्रियपरवश नहीं होता है वह मनुष्य ही वैचारिक शुद्धि और व्यवहारिक शुद्धि पा सकता है। शत्रु कौन? जो अहित करे? : ___ आप जानते हो क्या, आपके विचारों और आपके व्यवहारों को अशुद्धअपवित्र और असंस्कृत कर देने वाले कौन हैं? अशुद्धियों के उद्भव स्थानउत्पत्ति स्थान कौन-कौन से हैं, इसका ज्ञान होना अति आवश्यक है। जो-जो For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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