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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४५ २५४ सुखभोग की पाशवीय लीला! इसलिए कहता हूँ कि ऐसी मायाजाल से बचते रहना। अपनी बात चल रही है गृहस्थ जीवन के सामान्य धर्मों की। चौथा सामान्य धर्म है 'शिष्टचरित प्रशंसनम्'। यानी सज्जनों के चरित्र की प्रशंसा करना । सज्जनों की जीवनचर्या कैसी होती है, यह बात कुछ दिनों से बता रहा हूँ | आज यह विषय समाप्त करूँगा। सज्जनों की जीवनचर्या के तीन विशेष अवशिष्ट आचार और बताने हैं। १. सज्जन पुरुष लोकाचारों का पालन करनेवाले होते हैं। २. सज्जन पुरुष सर्वत्र औचित्य का पालन करनेवाले होते हैं। ३. सज्जन पुरुष गर्हित-निन्दित प्रवृत्ति का त्याग करनेवाले होते हैं। कुछ लोकाचार ऐसे होते हैं जिनमें किसी एक धर्म से संबंध नहीं होता। सभी लोकाचार धर्म से संबंधित नहीं होते। ऐसे लोकाचारों का पालन भी शिष्ट पुरुष करते होते हैं। जिन लोकाचारों में विशेष हिंसा वगैरह पाप नहीं होते हों, जिन लोकाचारों में निन्दनीय कुत्सित क्रियायें नहीं होती हों, वैसे लोकाचारों का पालन करना चाहिए। जिस गाँव नगर में आप रहते हो, उस गाँव-नगर की प्रजा के साथ आपका व्यवहार ऐसा रहना चाहिए कि आप प्रजाप्रिय बनें। गलत काम करके प्रजाप्रियता संपादन नहीं करने की है, अच्छे और सर्वजनसाधारण परोपकार के काम करके लोकप्रियता प्राप्त करने की है। ___ लोकाचारों के पालन में, समाज व्यवहार में औचित्य का पालन होना आवश्यक होता है। लोकाचार ही नहीं, धर्माचारों के पालन में भी औचित्य का पालन करना आवश्यक होता है। घर में, बाजार में नगर में, मंदिर में और उपाश्रय में सर्वत्र औचित्य का पालन करना चाहिए। शिष्ट पुरुषों की प्रज्ञा ही वैसी होती है कि सर्वत्र उचित कर्तव्य का बोध हो ही जाता है। समग्र लोकव्यवहार में शिष्ट पुरुष अपने उचित कर्तव्यों का पालन करते रहते हैं और गर्हित-निन्दनीय कार्यों से दूर रहते हैं। कितना प्रशंसनीय जीवनव्यवहार होता है शिष्ट पुरुषों का! ___ लंका में राम का जब भीषण युद्ध हुआ, लक्ष्मणजी के द्वारा जब रावण मारा गया, उस समय श्रीराम-लक्ष्मणजी वगैरह ने लोकाचार का कितना सुन्दर पालन किया था! कैसा सुन्दर औचित्यपालन किया था! जानते हो न? For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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