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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४५ २४६ नकली सुग्रीव अन्तःपुर में प्रवेश करने के लिए आगे बढ़ा | चन्द्ररश्मि ने उसको रोका | सुग्रीव के कहा : 'मैं ही सच्चा सुग्रीव हूँ, मैं ही अन्तःपुर में जाने का अधिकारी हूँ।' चन्द्ररश्मि ने कहा : 'आप सच्चे सुग्रीव हैं या नगर के द्वार पर खड़े हुए सुग्रीव सच्चे हैं - इस बात का जब तक निर्णय न हो तब तक आप धैर्य धारण करें।' नकली सुग्रीव चन्द्ररश्मि के साथ युद्ध करने तत्पर हो गया, चन्द्ररश्मि ने उसको वहाँ से हटाया। ___ परन्तु मंत्रीमंडल के लिए असली-नकली सुग्रीव का भेद करना अशक्य हो गया। सैनिक दो विभाग में बंट गये। लोग भी दो विभाग में बंट गये। दोनों सुग्रीव के पक्षकारों के बीच युद्ध प्रारंभ हो गया। किष्किन्धा नगरी की गलीगली में युद्ध होने लगा। मंत्रीमंडल चन्द्ररश्मि के पास पहुँचा | चन्द्ररश्मि ने कहा : जब तक असली-नकली सुग्रीव का भेद नहीं खुलेगा, आन्तरिक विग्रह होने वाला ही है | आप भेद को दूर करने का प्रयत्न करें, मैं यहाँ अंतःपुर से हटने वाला नहीं हूँ। ___ जो असली सुग्रीव था, अपने नगर की और सेना की दुर्दशा देखकर रो पड़ा | दो सुग्रीवों के बीच भयानक युद्ध हुआ परन्तु कोई किसी को हरा नहीं सका.... | मामला बड़ा पेचीदा बन गया । नकली सुग्रीव पुनः अन्तःपुर के द्वार पर पहुँचा। चन्द्ररश्मि ने उसको रोका। नकली सुग्रीव अत्यन्त क्रोध से चन्द्ररश्मि के साथ युद्ध करने लगा। चन्द्ररश्मि ने नकली सुग्रीव के सारे शस्त्र तोड़ दिये और उसे जमीन पर पटक दिया। उसके सीने पर कटारी रख दी और कहा : 'मैं इसलिए तुझे जिन्दा छोड़ता हूँ....चूकि तू यदि असली सुग्रीव हो, तो अनर्थ हो जाय तेरी मौत से । परन्तु यदि दूसरी बार अन्तःपुर में प्रवेश करने की कोशिश करेगा तो जिन्दा नहीं रहेगा।' नकली सुग्रीव वहाँ से भागा और असली सुग्रीव के पास पहुँचा | असली सुग्रीव को घेर कर किष्किन्धा का सेनापति सेना के साथ खड़ा था । नकली सुग्रीव अपनी छावनी में पहुँच गया। सुग्रीव की सहायता के लिए श्रीराम : __ असली सुग्रीव ने, इस संकट से मुक्त होने के लिए श्री हनुमानजी को बुलावा भेजा। हनुमानजी आये। उन्होंने दोनों सुग्रीवों को देखा! वे भी उलझन में फँस गये। हनुमानजी देखते रहे और नकली सुग्रव ने असली सुग्रीव को बहुत पीटा....। हनुमानजी चले गये। असली सुग्रीव बड़ा अफसोस करने लगा। वह अपने मित्रों को याद करने लगा.... उसको खर विद्याधर याद For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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