SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 249
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४४ २४१ अच्छी बातों का पक्षपात तो हृदय में हो सकता है। जो मनुष्य दान नहीं दे सकता है वह दान धर्म का पक्षपाती तो बन सकता है! ब्रह्मचर्य का पालन जो नहीं कर सकता है वह ब्रह्मचर्य का प्रशंसक तो बन सकता ही है! न्याय-नीति प्रमाणिकता का पालन नहीं कर सकने वाला मनुष्य भी न्याय-नीति और प्रमाणिकता का पक्षपाती तो जरुर बन सकता है। सभा में से : जिस बात का पक्षपात हो उस बात का पालन क्यों नहीं होता है... इसके पीछे कारण क्या है? ___ महाराजश्री : ऐसा नियम नहीं हो सकता कि जिस बात का पक्षपात हो उसका पालन होगा ही! नहीं भी हो सकता है। पक्षपात वैचारिक भूमिका है, पालन कर्तव्य की भूमिका है। वैचारिक भूमिका से कर्तव्य की भूमिका बढ़कर होती है। कर्तव्य की भूमिका निभाने में विशेष शक्ति अपेक्षित होती है। अच्छा विचार करना सरल है, अच्छा काम करना मुश्किल होता है। जिसे अच्छे काम करने की शक्ति न हो, उसे अच्छे काम की प्रशंसा तो करनी ही चाहिए, उसे अच्छे काम का पक्षपात तो होना ही चाहिए | प्रश्न : काम बुरा करता हो और विचार अच्छा करता हो....तो क्या फायदा? उत्तर : बहुत बड़ा फायदा है! वास्तव में यदि वह विचार अच्छे करता है तो एक दिन वह बुरा काम छोड़ देगा! बुरे काम छूट जायेंगे! यह फ़ायदा क्या कम है? इसलिए उत्तम पुरुषों के सत्कार्यों की प्रशंसा करते रहो। ___सज्जन जो भी कार्य करते हैं, उचित स्थान पर करते हैं। हर काम करने के उचित स्थान होते हैं। जिस स्थान पर जो कार्य करना हो उसी स्थान पर वह कार्य करना चाहिए। जीवन-व्यवहार में क्षेत्र और काल का महत्व होता है। हर कार्य का उचित समय और उचित स्थान होता है। मनुष्य को इस औचित्य का ज्ञान होना चाहिए | स्थान का औचित्य भी अनिवार्य : शिष्ट पुरुष कभी बाजार में खड़े खड़े नहीं खायेंगे! बाजार में किसी से झगड़ा नहीं करेंगे। रास्ते में खड़े-खड़े हँसी-मजाक नहीं करेंगे। रास्ते में परायी औरत से ज्यादा बातें नहीं करेंगे। ये सारी क्रियाएँ करने के लिए बाजार या रास्ता अनुचित स्थान है। खाना खायेंगे लेकिन घर में बैठकर! किसी से दो कटु शब्द कहेंगे परन्तु मकान में, हँसी-मजाक भी करेंगे परन्तु घर में! For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy