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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४४ __ २३५ धनशक्ति के दुर्व्यय से भी बचना चाहिए : धनशक्ति का, शिष्टपुरुष दुरुपयोग नहीं करते। धन भी गृहस्थ की एक बड़ी शक्ति है। उस शक्ति का दुर्व्यय नहीं करने वाले ही सद्व्यय कर सकते हैं। धन का, पैसे का दुरुपयोग और सदुपयोग किसे कहते हैं, यह तो आप जानते हो न? धन का दुर्व्यय नहीं करते हो न? धन का दुर्व्यय नहीं करने वालों के प्रति किस दृष्टि से देखते हो? ___ 'मुझे मेरी लक्ष्मी का दुरुपयोग नहीं करना है, ऐसा आपका दृढ़ संकल्प होगा तो ही आप दुरुपयोग नहीं करोगे और परिवार को भी अपनी बात समझाने में सफलता पाओगे। हाँ, परिवार को समझाना अनिवार्य है। अन्यथा आप तो दुरुपयोग नहीं करोगे परन्तु पत्नी, पुत्र, पुत्री वगैरह करते रहेंगे। आप सिनेमा देखने नहीं जायेंगे, परन्तु वे लोग जायेंगे! आप होटल में नहीं जायेंगे, वे लोग जायेंगे! आप फैशनेबल कपड़े नहीं पहनोगे, वे लोग पहनेंगे! आप दस रूपये के जूते से काम चला लोगे वे लोग सौ-दो सौ रूपये से कम कीमत वे जूते नहीं पहनेंगे। आपको बाहर जाना होगा, पैदल जाओगे या बस में जाओगे, वे लोग टैक्सी में घूमना पसन्द करेंगे। आप घर में अल्प 'फरनीचर' पसन्द करेंगे, वे लोग 'फरनीचर' से घर भर देना पसन्द करेंगे। आप सादा भोजन लेना पसन्द करेंगे, वे लोग विशिष्ट भोजन पसन्द करेंगे! बात एक आदर्श परिवार की : इसलिए, परिवार को धन का अपव्यय नहीं करने की बात, शान्ति से और तर्क से समझानी पड़ेगी। धन का सदुपयोग समझाना पड़ेगा। एक करोड़पति परिवार के निकट पन्द्रह-बीस दिन रहने का अवसर आया था। उस परिवार के दो लड़के कॉलेज जाने के लिए निकले, मैंने दोनों को देखा....मुझे सुखद आश्चर्य हुआ। उस समय तो मैं कुछ बोला नहीं, जब शाम को वे कॉलेज से वापस आये, भोजनादि से निवृत्त होकर मेरे पास आकर बैठे, मैंने उनसे पूछा'तुम हाथ पर घड़ी क्यों नहीं बांधते?' उन्होंने कहा : घड़ी की आवश्यकता ही नहीं रहती! घर में घड़ी देखकर जाते हैं, रास्ते में टावर समय बताता है और कॉलेज में घड़ी है ही! क्लास में भी घड़ी होती है! मैंने कहा : तुम्हें शौक नहीं है घड़ी बाँधने का? अथवा तुम्हारे मित्र नहीं कहते कि 'श्रीमंत होकर एक अच्छी घड़ी भी नहीं बाँधते?' दूसरे श्रीमन्त मित्रों For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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