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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २३१ प्रवचन-४३ लेता, पूरा करके छोड़ता था....। आप लोग पढ़ोगे तो प्रशंसा किए बिना नहीं रह सकोगे। दीनता और निराशा तो उसके पास भी नहीं जा सकती थी! जो कार्य उठा लिया, पूर्ण करके छोड़ने का! यह विशेषता सामान्य नहीं है, बहुत बड़ी विशेषता है। जिस व्यक्ति में यह विशेषता देखो, आप आनन्द व्यक्त करो, प्रशंसा करो। वैसे महापुरुषों के जीवन-चरित्र पढ़ो, उनके महान कार्यों की सिद्धि का वर्णन पढ़ो या....पढ़ते-पढ़ते उनके सत्व की हार्दिक प्रशंसा करते चलो! 'कैसा अपूर्व सत्व....कैसी वीरता....कैसी निर्भयता और कैसी कार्यसिद्धि? सोच विचार कर कार्य उठाओ : ज्यादातर लोग, सोचे-समझे बिना ही कार्य शुरू कर देते हैं! जब कोई छोटा-बड़ा विघ्न आया, कार्य अधूरा छोड़ देते हैं। जब इस प्रकार चार-पाँच कार्य अधूरे छूट जाते हैं, मनुष्य आत्मविश्वास खो देता है। अपनी निर्बलता को स्वीकार कर लेता है, हताश-निराश बन कर भटक जाता है। दोष होता है अपनी अस्थिरता का, निर्बलता का, निःसत्वता का, और वह दोष देता है अपने कर्मों को, अपने दुर्भाग्य को! मेरे पापकर्म उदय में आये हैं इसलिए मुझे किसी भी कार्य में सफलता नहीं मिलती....कोई कार्यसिद्धि नहीं होती। जीवनपर्यंत निराशा का रूदन करता हआ जीता है। ऐसे लोगों के जीवन में नहीं होता है उल्लास! नहीं होता है उत्साह! कैसे जीवन जीना है? तय कर लो, अभी भी कुछ बिगड़ा नहीं है.... सभा में से : बहुत कुछ, बिगड़ गया है...उत्साह टूट गया है....। अभी भी बाजी हाथ में है : महाराजश्री : बो बिगड़ गया है, याद मत करो। जो बिगड़ा नहीं है वह याद रखो! आप का शरीर स्वस्थ है, पाँचों इन्द्रियाँ कार्यरत हैं, आपकी बुद्धि सलामत है, फिर क्या बात है? कितना कुछ है तुम्हारे पास? __ एक भाई मेरे पास आये थे, उन्होंने कहा : मेरा तो सब कुछ नष्ट हो गया....व्यापार में सब संपत्ति गँवा दिया... 'पार्टनर' ने धोखा दिया...अब मरने के सिवाय कोई मार्ग नहीं दिखता...' मैंने कहा : 'आप शान्ति रखें। मन को विचारों से मुक्त करें, कुछ क्षणों के लिये, और मैं पूछू उसका उत्तर दें। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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