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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २०४ प्रवचन-४१ मा. विशुद्धि के रास्ते पर आगे बढ़ना होगा तो कुछ भीतर का म छोड़ना होगा....कुछ बाहर का छोड़ना होगा। • परायी निन्दा नहीं करनी चाहिए। परनिंदा सबसे बड़ा पाप है। यह बात जो लोग मानते हैं-जानते हैं वैसे लोग ही निंदा - नहीं करनेवालों की प्रशंसा कर पाएंगे। जो आदमी किसी का एकाध भी दोष नहीं देखता है और केवल गुणों को ही देखता है...वह व्यक्ति ही गुणानुरागी बन सकता है। दुःख की घड़ी भी खुशी में गुजारे उनका नाम सदियों तक जन-जन की जुबान पर रहता है। पारिवारिक प्रसन्नता की कीमत कम मत आँकना। छोटी-छोटी बातों को लेकर कहासुनी करने से परिवार में कलह बढ़ता है। प्रवचन : ४२ महान श्रुतधर पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में गृहस्थजीवन का सामान्य धर्म बताते हैं। सामान्य धर्म की दृढ़ भूमिका पर ही विशेष धर्म का महल खड़ा रह सकता है। प्रबल झंझावात में भी वह महल गिरेगा नहीं। यदि विशाल मंदिर का निर्माण करना है तो नींव उतनी ही गहरी और पक्की बनानी होती है। जमीन शुद्ध और समतल बनानी पड़ती है। तो क्या आत्मभूमि पर परमात्ममंदिर का निर्माण करने के लिए आत्मभूमि को शुद्ध नहीं करना पड़ेगा? समतल नहीं बनाना पड़ेगा? छोड़ने में दुःख होता है : जानते हो कि आत्मभूमि कितनी अशुद्ध है? कितनी विषम है? आत्मनिरीक्षण करो तो मालूम पड़ेगा। परंतु पहली बात तो यह है कि आत्मा को परमात्मा बनाने का विचार आता है? 'मुझे परमात्मदशा प्राप्त करना है, मुझे अशुद्ध आत्मा को विशुद्ध करना है, इसलिए इसी जीवन में पुरुषार्थ करना है, ऐसा संकल्प किया है? एक बात निश्चित मानना कि शुद्धि के बिना सुख नहीं मिलेगा। अशुद्धि में दुःख है, विशुद्धि में सुख है | इस सत्य को स्वीकार करना For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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