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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४१ २०२ यदि ऐसी आक्रोशपूर्ण बात करता तो माता के हृदय का क्या होता? जिस पुत्र के लिए, पुत्र को बचाने के लिए कष्ट सहन किये गाँव-नगरों में भटकती फिरी, उस पुत्र के मुँह से ऐसी बातें सुनने को मिले तो मातृहृदय जिंदा नहीं रह सकता। माता के उपकारों को नहीं समझने वाले पुत्र इससे भी ज्यादा आक्रोश करके माता के हृदय को तोड़ डालते हैं। कृतज्ञता गुण के अभाव में ऐसा होना स्वाभाविक होता है। श्रीपाल-मयणा के जीवन में उच्चस्तरीय कृतज्ञता गुण देखकर उसकी प्रशंसा किये बिना रहा नहीं जाता है। सभा में से : आजकल तो 'कृतज्ञता' गुण देखने को ही नहीं मिलता है। कोई किसी का उपकार मानने को ही तैयार नहीं है, इसमें भी बच्चे तो....? गुणों की प्रशंसा करके गुणों की प्रतिष्ठा को बढावा दो : महाराजश्री : इस में मात्र बच्चों का ही दोष नहीं है। आपने कभी भी क्या परिवार के सामने शिष्ट पुरुषों के 'कृतज्ञता' गुण की प्रशंसा की है? कृतज्ञता गुण की प्रशंसा कर उसकी प्रतिष्ठा स्थापित की है? आपने कभी माता-पिता के गुण गाये हैं आपके बच्चों के सामने? आपने आपके आपके माता-पिता का विनय-आदर करते गुए कभी कहा था कि 'हे माँ, तेरे उपकारों का बदला मैं कभी नहीं चुका सकता। तूने जो मुझे संस्कार दिये हैं, मैं तुझे कभी नहीं भूल सकता हूँ।' इसी प्रकार, जिन जिनका उपकार आपके ऊपर हों, उनकी प्रशंसा करते हुए आपके संतानों को आदर्श दिया क्या? संघ-समाज और नगर में दूसरे शिष्ट पुरुषों में यह गुण देखकर क्या आपने प्रशंसा की? गुणों की प्रशंसा कर गुणों की प्रतिष्ठा को बढ़ाओ, तभी दुनिया के लोग उस गुण का गौरव करेंगे। प्राचीन श्रीपाल की जगह अर्वाचीन कोई श्रीपाल होता तो मयणासुन्दरी को उपकारिणी मानता क्या? नहीं। वह तो कह देता साफ साफ : 'इसमें मेरे ऊपर काहे का उपकार कर दिया? उसको तो अपने धर्म की निन्दा बंद करवानी थी। यदि धर्म के प्रभाव से मैं नीरोगी बन जाऊं तो उसके धर्म की प्रशंसा हो, इसलिए मुझे नीरोगी किया....मुझसे भी ज्यादा प्रेम उसको धर्म का है....मैं तो अकस्मात् उसके जीवन में आ गया....।' ऐसी-ऐसी तो अनेक मूर्खतापूर्ण बातें करता रहे। मौलिक योग्यता जिस मनुष्य में नहीं होती है वह मनुष्य उपकारी का उपकार मानने को तैयार नहीं होता है। शिष्ट पुरुषों का कृतज्ञतागुण उसको दिखता नहीं है। देख भी लिया तो प्रशंसा नहीं करेगा, उपहास करेगा। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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