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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४१ १९९ धर्मक्रियायें करती थी....उसका फल मिला । यदि उसके जैनधर्म में सत होता तो अच्छा पति क्यों नहीं मिला? ऐसी तो अनेक बातें लोग करने लगे थे! मयणा धर्म की निन्दा सुनकर दुःख महसूस करती थी, इसलिए गुरूदेव आचार्य श्री मुनिचन्द्रसूरिजी के पास जाकर उसने यही बात कही थी कि'गुरूदेव, लोग धर्मनिन्दा के पाप से बचे वैसा उपाय बताने की कृपा करें! यदि इनका (श्रीपाल का) कुष्ठ रोग चला जाता है तो लोगों को निन्दा छोड़नी पड़ेगी और धर्म की प्रशंसा करनी पड़ेगी!' मयणा की प्रार्थना सुनकर गुरूदेव ने श्री सिद्धचक्र यन्त्र की आराधना बतायी और मयणा ने श्रीपाल के साथ आराधना की। श्रीपाल का कुष्ठ रोग दूर हो गया। शिष्टजन यानी दीन दुःखी का उद्धारक : शिष्ट पुरुषों का दूसरा लक्षण होता है दीन दुःखी का उद्धार करने की तत्परता । श्रीपाल और मयणा के हृदय कितने करूणासभर थे यह बात बताता हूँ। जब श्रीपाल निरोगी बने, उनको अपने सातसौ कुष्टरोगी साथी याद गये! वे मात्र साथी नहीं थे, उपकारी भी थे! श्रीपाल के जीवन-रक्षक थे! श्रीपाल के प्राण बचानेवाले थे! कृतज्ञ-श्रीपाल : श्रीपाल का जन्म राजपरिवार में हुआ था। अभी तो वह बच्चा ही था, उसके पिता-राजा का देहावसान हो गया और राजखटपटें शुरू हो गईं। श्रीपाल के चाचा ने राज्य के लालच से राज्य के वारिसदार श्रीपाल को मार डालने का षड्यंत्र रचा | महामंत्री को षड्यंत्र का पता लग गया! उन्होंने रानी को सावधान कर दिया और राजकुमार को लेकर भाग जाने की राय दी। रानी कमलप्रभा अपने छोटे से पुत्र को लेकर रात्रि के अंधकार में नगर से दूर-दूर निकल गई। उसको पता था कि पीछे सैनिक लोग आयेंगे ही। इसलिये कांटों और कंकरों की परवाह किये बिना रानी दौड़ती ही रही। माँ की चिन्ता : रानी जंगल में दौड़ती जाती है...परन्तु उसने अपने पीछे पड़े हुए घुडसवारों की आवाज सुनी। वह घबरायी। अब पुत्र की रक्षा कैसे होगी? प्रभात हो गया था। उसने उसी जंगल में दूर कुछ लोगों को देखा। 'शायद ये मेरी रक्षा करें तो' इस आशा से वह उन लोगों के पास पहुँची। देखा तो वह सैंकडों For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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