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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८९ प्रवचन-४० उसने मजदूर वेशधारी शैतान के दूत से पूछा। उसने कहा : 'जितने गेहूं ज्यादा हों, उनकी शराब बना देनी चाहिए।' किसान ने कहा : 'शराब कैसे बनायी जाती है?' दूत ने कहा : 'मैं शराब बनाना जानता हूँ।' किसान बड़ा खुश हो गया और शराब बनाने की इजाजत दे दी। शैतान के दूत ने तीव्र नशेवाली शराब बनायी। किसान ने जाम भरभर पिया और अपने मित्रों को भी पिलाया । शैतान का दूत अपनी सफलता पर गर्वित हुआ और पहुँचा शैतान के पास । शैतान को 'रिपोर्ट' दे दी। शैतान स्वयं उस जगह पर पहुँचा कि जहाँ किसानों ने शराब पीनी शुरू की थी। शैतान जब उस किसान के घर पहुँचा, उसने देखा तो उसके घर के आगे अनेक स्त्री-पुरुषों की भीड़ जमी हुई थी। शराब की महफिल जमी हुई थी। किसान की पत्नी मेहमानों को शराब दे रही थी। अचानक पत्नी के हाथ में से प्याला जमीन पर गिर गया और शराब जमीन पर दुलक गयी। किसान क्रोध से गालियाँ बकने लगा। शैतान के दूत ने शैतान से कहा : देखा? यह वही किसान है कि जिसने अपनी एक ही रोटी किसीने छीन ली थी तब एक भी बुरा शब्द नहीं बोला था। शैतान का सीना फूल गया : किसान ने पत्नी के हाथ में से शराब की प्याली ले ली और मित्रों के साथ मस्ती में शराब पीने लगा। इतने में एक गरीब किसान वहाँ से गुजरा उसने इस श्रीमन्त किसान के यहाँ महफिल जमी हुई देखी और वह भी महफिल में घुस गया। सख्त मेहनत से वह काफी थक गया था। शराब देखकर उसके मुंह में पानी आने लगा। उसको इच्छा हुई कि 'मुझे भी इस शरबत के दो चार चूंट मिल जायें तो कितना अच्छा।' परन्तु यजमान किसान ने उसको शराब दी नहीं और बड़बड़ करने लगा 'इस प्रकार चलते-फिरते लोगों को मैं शराब देता रहूँगा तो मेरा दिवाला ही निकल जायेगा न!' यह दृश्य देखकर शैतान के हर्ष का ठिकाना नहीं रहा। अपने दत की पीठ थपथपाता बोला 'बहुत अच्छा, मेरे दोस्त! यह तो अभी प्रारभ्भ है....आगे देखते रहो।' शराब पीने का पहला दौर समाप्त हुआ। सभी किसान नशे में चकचूर बन कर झूमने लगे....एक दूसरे को गले लगाने लगे और चापलूसी करने लगे। शैतान ने दूत से कहा : मदिरापान मनुष्यों को इतना नीच व अधर्म बना देता है कि वे एक-दूसरे को दगा देने लगते हैं। अब शीघ्र ही ये लोग हमारे परवश For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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