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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १८३ प्रवचन-३९ नहीं करते थे। आजादी के बाद स्वदेशी सत्ताधीशों ने भारतीय धर्मभावना को कुचलने का ही काम किया है। अहिंसाप्रधान देश में जगह जगह हिंसा की तांडव लीला खेली जा रही है। कारखानों में प्रतिदिन लाखों पशुओं की क्रूर हत्या हो रही है। परदेशों में मांस का निर्यात कर विदेशी मुद्रा कमायी जाती है! मांस का व्यापार! शराब का व्यापार! भगवान महावीर की इस धरती पर क्या हो रहा है, आप सोच सकते हो क्या? ऐसे बदले हुए देशकाल में मांसाहार से बचना, मद्यपान से बचना, इतना आसान काम तो नहीं है! फिर भी बचना अनिवार्य है। दृढ़ मनोबल होगा तभी बच सकोगे। व्यसनों में फिसलने के मार्ग अनेक हैं। काफी सावधानी बरतनी होगी। सुशील और संस्कारी परिवार के लोग भी फिसल रहे हैं। गलत सोहबत के कटु परिणाम : । श्री रामचन्द्रजी के पूर्वजों के इतिहास में भी ऐसी एक घटना पढने में आती है। अयोध्या के राजसिंहासन पर उस समय राजा नधुष राज्य करता था। उसकी रानी का नाम था सिंहिका। सिंहिका महासती सन्नारी थी। सतीत्व के प्रभाव से उसने नघुष का दाहज्वर शान्त कर दिया था। राजकुमार सोदास को सिंहिका ने सुशील और संस्कारी बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। परन्तु तरूण सोदास की पुरोहित पुत्र से मित्रता थी। पुरोहित पुत्र आनंद मांसाहारप्रिय था। सोदास नहीं जानता था कि उसका मित्र मांसाहारी है। धीरे-धीरे मित्र के आग्रह से सोदास जमीनकंद खाने लगा। हालांकि सोदास अपनी माता से डरता था, इसलिए अपनी माता को मालूम न हो उस प्रकार छुप-छुप कर वह जमीनकंद खाता था। मित्र उसको पूरा सहयोग देता था। सिंहिका रानी को पता नहीं था कि उसका पुत्र मित्र के संग जमीनकंद खाने लगा है। रसलोलुपता भयानक होती है। अभक्ष्यभक्षण में रसवृत्ति उत्तेजित होने पर मनुष्य को वापस लौटना मुश्किल हो जाता है। बार-बार अभक्ष्य भक्षण करने से रसवृत्ति प्रबल होती जाती है। प्रारम्भ में लज्जा होती है, समय बीतने पर निर्लज्जता आ जाती है। फिर भी तो पापों का भय नहीं रहता? लोकभय.... अपयशभय नहीं रहता है। सोदास का रास्ता तब साफ हो गया जब राजा नघुष और सिंहिका ने संसार त्याग कर दिया, चारित्र्य ले लिया! सोदास अयोध्या के साम्राज्य का For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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