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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११ प्रवचन-२५ निर्मर्याद बना देती है। भौतिक-वैषयिक सुखों का तीव्र राग और दुःखों का भय-द्वेष आपको निरन्तर सताता है एवं मूढ़ बनाये रखता है। ऐसी स्थिति में आप कैसे धर्मपुरुषार्थ करके आत्मविशुद्धि कर सकते हैं? ___ हालाँकि परमकृपानिधि तीर्थंकर परमात्मा ने ऐसे गृहस्थजीवन में भी धर्म बताने की कृपा की है। कुछ सामान्य और विशेष धर्मआराधना गृहस्थ स्त्रीपुरुषों के लिए बतायी है, परन्तु आप लोग अपने जीवन में उस धर्मआराधना को स्थान दो तब न! राग-द्वेष और मोह की प्रबलता में शान्ति और स्वस्थता रहती नहीं और शांति एवं स्वस्थता के बिना धर्म की आराधना हो नहीं सकती। इस अपेक्षा से कहता हूँ कि साधुजीवन ही धर्मपुरुषार्थ करने का 'प्रॉपर' जीवन है। साधुजीवन में संसार का कोई प्रपंच ही नहीं। साधुजीवन, सचमुच निश्चिंत जीवन है : साधुजीवन में न घर बनाने की कोई चिन्ता, न घर गिर जाने की चिन्ता! न पैसा कमाने की चिन्ता, न पैसा गँवाने की चिन्ता! न पत्नी-परिवार की चिन्ता, न स्नेही स्वजनों की चिन्ता! सम्पूर्ण चिन्तामुक्त जीवन! कोई सांसारिक प्रवृत्ति नहीं.....सम्पूर्ण निवृत्ति । इस निवृत्तिमय जीवन में सतत धर्म प्रवृत्ति करते रहो! निवृत्ति में प्रवृत्ति! गृहस्थजीवन सांसारिक प्रवृत्तियों से भरा हुआ होता है.....वहाँ धर्म की प्रवृत्ति कैसे हो सकती है? वहाँ तो धर्मपुरुषार्थ की निवृत्ति बनी रहेगी! मेरी तो यही राय है की आप लोग साधुधर्म का ही चुनाव कर लो! इस मानवजीवन में साधुधर्म का पालन कर लो, जीवन सफल बन जायेगा। दुर्लभ मानवजीवन का श्रेष्ठ सदुपयोग हो जायेगा । गुरुचरणों में जीवन समर्पित कर दो, सद्गुरु की सेवा, भक्ति और उपासना करते रहो। दूसरी कोई चिन्ता आपको नहीं करनी होगी। आपकी सारी चिन्ताएँ गुरुदेव करेंगे। आपका काम उनकी शरण में रहना है! बस, दूसरा सब कुछ गुरु सम्हालेंगे। एकमात्र बन्धन रहेगा गुरु आज्ञा का। संसार में, गृहस्थजीवन में तो हजारों बंधन होते हैं, साधुजीवन निर्बधन जीवन होता है। कब करेंगे आप निर्णय? आप लोग आज निर्णय करोगे? निर्णय करने के लिए आज का दिन अच्छा है। घर जाकर परिवार के साथ परामर्श करके निर्णय करना हो तो वैसे करना। आप घर जाकर ये सारी बातें करोगे तो सही न? For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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