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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३९ १८० शा. धर्मआराधना करनेवालों का दिल, आत्मविशुद्धि का पुरुषार्थ करनेवालों का मन निराकुल एवं चिंतारहित होना जरूरी है। ताकत का आधार केवल आहार नहीं है। मांसाहार नहीं करनेवाले अनेक महाबलवान महापुरुष विश्व के अंदर इतिहासप्रसिद्ध बने हैं। शराब पीनेवाले इस जीवन में भी पशु का जीवन जीते हैं... आनेवाले जीवन में तो जानवर बनते ही हैं। गलत कार्य हमेशा मन को भयभीत बनाये रखता है। आदमी न तो चैन से जी सकता है, न ही सुख से मर पाता है। बुरी यादें उसका पीछा नहीं छोड़तीं। प्रवचन : ४० परम करुणानिधि पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में सामान्य धर्म का निरूपण करते हुए तीसरा सामान्य धर्म बता रहे हैं परोक्षप्रत्यक्ष आपत्तिओं से सावधानी! इहलौकिक-पारलौकिक कष्टों से बचते रहो। एक बात अच्छी तरह समझ लो! कुछ कष्ट कुछ आपत्तियाँ जीवात्मा के पापकर्मों के उदय से आती हैं, कुछ कष्ट और दुःख जीवात्मा के दुष्ट आचरण से आते हैं। आप कोई दुष्ट आचरण नहीं करते यानी आप न्याय-नीति और ईमानदारी से व्यवहार करते हो, आप जुआ नहीं खेलते हो, आप परस्त्रीगमन नहीं करते हो, आप मांसभक्षण नहीं करते हो, शराब नहीं पीते हो फिर भी आप आपत्ति में फँसे जाते हो, अकल्पित दुःखों में फँसे जाते हो तो समझना कि पूर्व जन्मों में उपार्जित पापकर्मों का उदय हुआ है। परन्तु यदि आप अन्यायपूर्ण व्यवहार करते हो और आपत्ति आती है, यदि आप जुआ खेलते हो और कष्ट आता है, यदि आप परस्त्रीगमन करते हो और आफत में फँस जाते हो, यदि आप मांसभक्षी बने हो और कष्ट आते हैं, यदि आप मदिरापान करते हो और आपत्ति में फँसते हो...तो समझना कि आपके ही बुरे आचरण से आप दुःखी बनते हो। जीवन किस के लिए : धर्म-आराधना करने वालों का मन, आत्मशुद्धि का पुरुषार्थ करनेवालों का For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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