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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७८ प्रवचन-३९ ललितांग को रानी का रूप भा गया.... वह एकटक रानी को देखते ही रहा। रानी ने उसको संकेत से अपने पास आने का समय और स्थान बता दिया । ललितांग रानी का संकेत समझ गया। वह खुश हो गया। उसके मन में संयोगसुख की कल्पना उभर आयी....वह विकारपरवश हो गया। रानी ने सूर्यास्त के बाद गुप्त रास्ते से महल में आने का संकेत किया था। ललितांग ठीक समय पर पहुँच गया महल में | रानी और ललितांग प्रेमसागर में डूबने लगे....। कुछ क्षण बीते होंगे त्यों रानिवास में राजा के आने की आहट सुनी! रानी घबरा गयी! यह समय राजा के आने का नहीं था, अकस्मात् ही राजा आ गया था। ललितांग भी घबरा गया! रानी ने शीघ्र ही ललितांग को छिपा देना चाहा.... परन्तु कहाँ छिपाये? उसकी नजर भीतर के पायखाने की ओर गई। उसने ललितांग को पायखाने में छिप जाने को कहा। एक क्षण का भी विलंब किये बिना ललितांग पायखाने में घुस गया! राजा ने रानिवास में प्रवेश किया। रानी ने प्रेम से राजा का स्वागत किया। रानी का हृदय तो कांप रहा था.... भय से थर्रा रहा था.... फिर भी रानी चतुर थी, उसने अपने मुँह पर प्रसन्नता रखी....। राजा ने रानिवास में इधर-उधर देखा और रानी से कहा : 'मुझे पानी दो, मैं पायखाना जाऊँगा। रानी क्षणभर स्तब्ध हो गई। पायखाने में छिपे हुए ललिताँग ने भी राजा की बात सुनी! भयभीत हो गया.... राजा की तलवार से बचने के लिए वह पायखाने में उतर गया.... विष्टाभरी गटर में उतर गया! भय से आक्रान्त मनुष्य क्या नहीं करता है? राजा ने जब पायखाने का दरवाजा खोला, रानी की सांस ऊँची हो गई.... परन्तु जब ललितांग को पायखाने में नहीं देखा तब जाकर उसे शान्ति हुई। वासना हमेशा स्वार्थभरी होती है : रानी अपनी सलामती चाहती थी। यदि पायखाने में ललितांग पकड़ा जाता तो मात्र ललितांग को ही सजा नहीं होती, रानी को भी सजा होती! संभव था कि राजा दोनों का कत्ल कर देता | रानी ने जब देखा कि ललितांग पायखाने में नहीं है-वह खुश हो गई! वह खुशी थी उसकी स्वयं की सलामती की! क्या वह रानी नहीं समझ सकी होगी कि ललितांग पायखाने में से कहाँ गया होगा? उस गटर में ललितांग का क्या होगा, उसकी कल्पना उसको नहीं आयी होगी? परन्तु रानी ने यह कुछ भी नहीं सोचा। वह कैसे सोच सकती थी! उसके हृदय में ललितांग के प्रति प्रेम नहीं था, वह तो ललितांग को मात्र For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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