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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३९ १७५ सभा में से : ऑफिसों में काम करने वाली महिलाओं के साथ तो बातें करनी पड़ती हैं..... महाराजश्री : और क्या क्या करना पड़ता है... बोल दो! बातें करते-करते कितने आगे निकल जाते हैं लोग? परस्त्री के साथ आपकी मित्रता का ज्ञान जब आपकी पत्नी को होगा तब क्या प्रतिक्रिया होगी ? जब उस स्त्री के पति को मालूम होगा तब क्या प्रतिक्रिया होगी ? संकट आ सकते हैं या नहीं? घर में क्लेश और बाहर झगड़ा होगा न ? संभव है उस स्त्री का पति स्त्री को अथवा आपको यमलोक में भी पहुँचा दे ! अशांत मन से आराधना असंभव : एक बड़े शहर में एक भाई नियमित प्रवचन सुनने आया करता था । एक दिन रात्रि के समय मेरे पास आकर उन्होंने अपनी दुःखद कहानी सुनायी । उनकी पत्नी दूसरे पुरुष से प्रेम करती थी । उस पुरुष के साथ घूमती-फिरती । पत्नी को इस भाई ने देख लिया था । वह पुरुष 'दादा' टाइप का था । ये महानुभाव व्यापारी थे। अपनी पत्नी को समझाने की भरसक कोशिश करने पर भी पत्नी इन्कार करती रही। तब उनको भयानक क्रोध हो आया ... एक दो बार पत्नी को मारा भी । परन्तु पत्नी ने परपुरुष का त्याग नहीं किया.... तब उनके सामने समस्या खड़ी हो गई.... 'अब क्या करना?' घर में दो बच्चे थे ! समाज में इज्जत और प्रतिष्ठा थी। तलाक ले तो बच्चों का प्रश्न था और इज्जत का प्रश्न था....! स्त्री को लाख बार समझाने पर भी समझने को तैयार नहीं थी । इस भाई का 'टेन्शन' भारी हो गया था । उनको लगता था कि वे शायद पागल बन जायेंगे । दुनिया की निगाहों में वे सुखी थे! बाजार में दुकान थी... पैसे थे.... पत्नी थी, बच्चे थे ! इज्जत थी... प्रतिष्ठा थी....! परन्तु आन्तरिक परिस्थिति विपरीत थी ! बाह्य सुख के साधन उपलब्ध होने पर भी वे दुःखी थे, अशान्त थे, संतप्त थे ! उनको भय था कि कभी क्रोधावेश में वे पत्नी की हत्या न कर डालें ! पत्नी के प्रेमी की हत्या करने की तो शक्ति नहीं थी! भय अवश्य था... कि 'वह 'दादा' कभी मेरी हत्या न कर डाले!' पत्नी यदि उसके प्रेमी को कह दे कि 'मेरे पति को ठिकाने पहुँचा दो,' तो काम हो जाय पूरा ऐसी परिस्थिति में... घोर अशान्ति में वह कैसे धर्मआराधना कर सके ? कैसे आत्मध्यान... परमात्मध्यान कर सके ? कैसे धर्म क्रियाओं में लीनता अनुभव कर सके ? For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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