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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३८ १६४ दोषों के छिद्रों को देखती हैं और दोषानुवाद करने लगती हैं। बहुत तीव्र गति से वे अपना व्यक्तित्व खो देती हैं। अनुचित स्वतंत्रता के नशे में आज लाखों महिलाएँ शराब वगैरह नशे करने लगती हैं। अनेक गलत रास्तों पर चलती हुई महिलाएं अपने आपको विशेष परतंत्र बना रही हैं। कौन समझाये उनको? यदि कुलवधू की रक्षा करनी है, उसको आदर्श गृहिणी बनाना है तो इन बातों पर गंभीरता से सोचना होगा। यदि नहीं सोचेंगे तो आप कुलवधुओं के शील की रक्षा नहीं कर पाओगे, उन कुलवधुओं से सुयोग्य संस्कारी सन्तानों की अपेक्षा नहीं रख सकोगे, उन कुलवधुओं के अयोग्य आचरण से आपके दिमाग पर 'टेन्शन' बना रहेगा, आप सदैव व्यग्र रहोगे। आपके घर के काम सुव्यवस्थित नहीं होंगे। सारा घर नौकरों के भरोसे रह जायेगा। घर पर आनेवाले स्नेही-स्वजनों का उचित आदर-सत्कार नहीं होगा। आचार-व्यवहारों की शुद्धि नहीं रहेगी। स्वतंत्र कुलवधू अतिथि-सत्कार भी नहीं करेगी। उसे तो घर कारावास जैसा लगेगा। स्त्री के पास पैसे हों और स्वतंत्रता हो, फिर क्या चाहिए? ऐसी महिलाओं से सुसंस्कारी परिवार-व्यवस्था नहीं निभ सकती। इसलिए ऐसी आपकी परिवार-व्यवस्था होनी चाहिए कि कुलवधुएँ ही गृहकार्य करें | कुलवधुओं के पास परिमित ही रुपये होने चाहिए। कुलवधुओं को अकेले घूमने-फिरने की स्वतंत्रता नहीं होनी चाहिए। चौथी बात भी उतनी ही महत्त्वपूर्ण है : कुलवधू के पास माता के समान प्रौढ़ एवं वृद्ध महिलाएँ रहनी चाहिए। घर में अकेली एक-दो युवान महिलाएँ नहीं रहनी चाहिए, अकेली युवामहिला तो रहनी ही नहीं चाहिए। यह बात तो आप मानोगे न? युवास्त्री को अकेली मत रखें : थोड़े समय पहले एक भाई मिले। युवान थे, पढ़े-लिखे थे और एक सरकारी कारखाने में नौकरी करते थे। थे राजस्थान के और सर्विस करते थे मध्यप्रदेश में । शादी के बाद वह अपनी पत्नी को अपने साथ मध्यप्रदेश में ले गये। सरकार की तरफ से रहने के लिए मकान मिला था। पत्नी को ले जाकर घर बसाया और आनन्द से रहने लगे। परन्तु जब ये महानुभाव सुबह सर्विस पर चले जाते, तब घर में अकेली उनकी पत्नी रह जाती! आसपास रहनेवाले लोग ऐसे-ऐसे प्रदेश के थे कि एक-दूसरे की भाषा नहीं समझ सकते। सबकी अपनी-अपनी स्वतंत्र जीवनपद्धति थी। कुछ लोग तो मांसाहारी भी थे, शराब भी पीते थे। वह औरत तो हैरान-परेशान होने लगी। शाम को जब उसका पति घर For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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