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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३६ १४७ ८. पैशाच-विवाह : सोई हुई अथवा प्रमत्त कन्या का अपहरण कर ले जाना और कन्या की अनिच्छा होते हुए भी उसके साथ शादी करना 'पैशाच-विवाह' है। ये चार प्रकार के विवाह धर्मनिषिद्ध विवाह हैं, परन्तु यदि स्त्री-पुरुष दोनों की परस्पर प्रीति हो तो धर्मविहित है। उस प्रीति में कोई भय अथवा लालच नहीं होनी चाहिए। सहज स्वाभाविक आन्तर प्रीति से विवाह हुआ हो तो अधार्मिक नहीं बनता है। रामायण में एक किस्सा आता है। श्रीकंठ नाम का राजकुमार अपने विमान में आकाश-मार्ग से जा रहा था। एक नगर में बाह्य उद्यान में उसने एक राजकुमारी को देखी। श्रीकंठ विमान को कुछ नीचे लाया, राजकुमारी ने कुमार को देखा....दोनों अनुरागी बन गये । तत्काल श्रीकंठ ने राजकुमारी का अपहरण करने का निर्णय किया। विमान जमीन पर उतार कर, राजकुमारी को लेकर आकाश-मार्ग से भागने लगा। राजकुमार ने अपहरण किया परन्तु राजकुमारी की संमति से किया। जब राजकुमारी के पिता विद्याधर राजा को मालूम पड़ा कि उसकी कन्या का अपहरण हो गया है, शीघ्र ही सेना के साथ आकाश-मार्ग से उसने पीछा किया। श्रीकंठ तो सीधा पहुँच गया लंकाद्वीप पर | लंका का राजा कीर्तिधवल श्रीकंठ का बहनोई था। श्रीकंठ ने जाकर कीर्तिधवल से सारी बात कह दी। कीर्तिधवल ने श्रीकंठ को आश्रय दिया। उसने लंका के द्वार बंद करवा दिये और अपने सैन्य को सजग कर दिया। __कीर्तिधवल ने एक दूत को अपना संदेश लेकर विद्याधर राजा के पास भेजा । दूत ने जाकर लंकापति का संदेश सुनाया : 'आप उपशान्त हों, आपकी लड़की अपनी इच्छा से राजकुमार श्रीकंठ के साथ आई है। श्रीकंठ ने बलप्रयोग से अपहरण नहीं किया है। यों भी कन्या पराया धन है, किसी भी सुयोग्य राजकुमार से उसकी शादी करने की ही होगी, तो फिर जब कन्या ने स्वयं पति का वरण कर लिया है तब आपको गुस्सा नहीं करना चाहिए, परन्तु दोनों को प्रेम से आशीर्वाद देकर शादी कर देनी चाहिए।' दूत ने संदेशा सुनाया, इतने में एक दासी ने आकर राजा से कहा : 'महाराजा, मैं देवी पद्मा का संदेशा लेकर आई हूँ | उसने कहा है कि मैं अपनी इच्छा से श्रीकंठ के साथ आई हूँ, श्रीकंठ का कोई दोष नहीं है। मैं मन से श्रीकंठ की पत्नी बन गई हूँ, इसलिए आप गुस्सा नहीं करें।' राजा ने सोचा कि दोनों ने परस्पर के अनुराग से काम किया है, तो अब For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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