SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 152
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३६ १४४ अमरीका में अब एक परिवर्तन आया है। जो महिलाएँ बड़ी उम्र तक शादी नहीं करती थीं, उन महिलाओं ने अपने कटु अनुभवों के आधार पर बताया कि 'शादी सोलह वर्ष की आयु में कर लेनी चाहिए।' और आजकल वहाँ लड़कियाँ १६-१७ वर्ष की आयु में शादी करने लगी हैं। ___ जो महिलाएँ घर की जिम्मेदारियों से मुक्त होकर स्वतन्त्रता से जीना पसन्द करती थीं, महिलाएं अपने कटु अनुभवों से बोध लेकर वे 'Return to Home' घर की तरफ चलने लगी हैं। मुझे लगता है कि अपने देश की महिलाएँ भी कटु अनुभव नहीं होगा तब तक वापस नहीं लौटेगी। अभी तो वे घर से दूर-दूर स्वर्ग देख रही हैं और उधर दौड़ रही हैं। मोक्षमार्ग बतानेवाले, मोक्षमार्ग की आराधना बतानेवाले, अध्यात्म का उपदेश देनेवाले ये दोनों महान श्रुतधर आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी और श्री मुनिचन्द्रसूरिजी, गृहस्थ जीवन की विवाह-पद्धति के विषय में जब मार्गदर्शन दे रहे हैं तब अपन को समझना चाहिए कि इस बात का संबंध मोक्षमार्ग से है। धर्मपुरुषार्थ के साथ इसका संबंध है। अन्यथा ऐसे महात्मा, पुरुष शादी-विवाह के विषय को स्पर्श भी नहीं करते। एक महान ज्ञानी पुरुष भगवान उमास्वाती ने कहा है। 'लोकः खलु आधारः सर्वेषां ब्रह्मचारीणाम् ।' लोक यानी समाज, लोक यानी प्रजा, प्रजा तो सभी संयमी पुरुषों का आधार है। सभी संयमी स्त्री-पुरुष का जो आधार है, वह आधार कितना विशुद्ध और सुदृढ़ होना चाहिए? यदि आधार अशुद्ध होगा, ढीला होगा, कमजोर होगा तो कभी आधेय को गिरायेगा। प्रजा यदि कुलवान्, शीलवान् और गुणवान् नहीं होगी तो संयमी स्त्री-पुरुषों का आदर ध्वस्त हो जायेगा। संयमी जीवन का अस्तित्व ही खतरे में पड़ जायेगा। शील और संयम का मूल्यांकन करनेवाले समाज में ही साधुता का, संयम का पालन अच्छी तरह हो सकता है। जिस समाज में शील और संयम का मूल्यांकन नहीं रहा, उस समाज में साधु-साध्वी भी शील और संयम से भ्रष्ट हो गये। प्राचीन भारत में कितने प्रकार के विवाह होते थे, कैसे होते थे....वगैरह बातें आगे बताऊँगा। आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy