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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३५ सभा में से : हम लोगों के घर में तो ऐसा ही हो रहा है! १३१ महाराजश्री : इससे क्या दूसरों की रुचि में परिवर्तन आया ? नहीं आया है न? फिर भी गलत मार्ग आप छोड़ने को तैयार नहीं हैं! अभी-अभी एक भाई ने मुझे कहा था कि उसकी पत्नी उसको तपश्चर्या करने का इतना आग्रह करती है कि तौबा उससे ! 'मैं तप करती हूँ तो आप भी मेरे साथ तप करो, करना ही पड़ेगा!' वह भाई तप नहीं कर सकता था, उसकी तप में रुचि ही नहीं थी। उसने पत्नी से कहा : तू तप कर सकती है, मैं मना नहीं करता, परन्तु मैं तप नहीं कर सकता हूँ... मुझे तप करने का आग्रह मत कर। तेरी तपश्चर्या पूर्ण होने पर तू कहेगी तो दो-चार हजार रूपये अच्छे कार्य में खर्च कर दूँगा...पर तप नहीं कर सकता ।' परन्तु पत्नी रोज परेशान करती है! पति को शान्ति से भोजन भी नहीं करने देती है! कटु शब्दों में पति को लताड़ती रहती है ! पति बेचारा शान्त दिमाग का है सुन लेता है... जवाब ही नहीं देता है ! परन्तु यदि पत्नी नहीं समझेगी और दुराग्रह नहीं छोड़ेगी तो मुझे भय लगता है कि उसका पति घर छोड़कर भाग जायेगा कहीं पर । For Private And Personal Use Only पति की रुचि का परिवर्तन इस प्रकार नहीं किया जा सकता । प्रिय व्यवहार से और मधुर शब्दों से, धैर्य से और बुद्धिमत्ता से रुचि का परिवर्तन सम्भवित बन सकता है । परन्तु कौन समझाये आप लोगों को ? रस की समानता : जिस प्रकार रूप की और रुचि की समानता देखते है वैसे रस की समानता भी देखनी चाहिए। रस की समानता का अर्थ है खाने-पीने की समानता । खाने-पीने की रसवृत्ति में यदि विरोधाभास होता है तो पति-पत्नी के बीच झगड़ा हो जाता है । इस विषय में पति की रसवृत्ति का ख्याल पत्नी को रखना होता है। जो पत्नियाँ पति के 'टेस्ट' को जानकर भोजन बनाती हैं और प्रेम से खिलाती हैं उनको पति की ओर से विशेष स्नेह प्राप्त होता है। जहाँ भक्ष्य और अभक्ष्य का प्रश्न हो वहाँ पत्नी को बड़ी शान्ति से, धैर्य से और समता से काम लेना चाहिए। हालाँकि यह बात तो शादी से पूर्व ही सोचने की होती है। यदि स्त्री स्वयं अभक्ष्य नहीं खाती है तो उसको ऐसा पति पसंद करना चाहिए कि जो अभक्ष्य नहीं खाता हो ! अभक्ष्य भक्षी पति पसंद किया तो फिर सहनशील बनना होगा। पत्नी अथवा पति से रसवृत्ति का शान्ति से
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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