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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२६ प्रवचन- ३५ का काम तो करती नहीं ! घर का और पति का काम तो नौकर करते हैं! पत्नी तो सेठानी बनी रहती है। कोई काम करती नहीं इसलिए 'काम' उसको सताता है! फिर इधर-उधर भटकती है । 'मैं सर्विस करती हूँ' कहकर 'बॉस' के साथ पिक्चर देखना, क्लबों में जाकर नाचना, गार्डनों में घूमना वगैरह अनुचित और विघातक प्रवृत्तियाँ करती हैं। पति की तो परवाह ही नहीं करती हैं। रुपये कमानेवाली महिला प्रायः पति का अनादर ही करेगी । प्रसन्न दाम्पत्य जीवन आज किसका रहा है ? प्रसन्न दाम्पत्य जीवन का आदर्श भी किसको याद है ? आज मनुष्य स्वकेन्द्रित बनता जा रहा है। पति को पत्नी के सुख-दुःख का विचार नहीं, पत्नी को पति के सुख - दुःख का विचार नहीं! सन्तानों को माता-पिता का विचार नहीं और माता-पिता को सन्तानों की चिन्ता नहीं ! सब अपने-अपने सुख की खोज में पथभ्रष्ट हो रहे हैं । वेश-भूषा की पसन्दगी हर व्यक्ति स्वयं कर रहा है। स्नेही स्वजनों की पसन्दगी नहीं चलती है। पति को पसन्द हो या न हो, पत्नी अपनी इच्छा के अनुसार वेशभूषा पहनने लगी है। पत्नी की पसन्दगी की परवाह किये बिना पति अपनी इच्छा के अनुसार वेश-भूषा पहनने लगा है। फिर एक-दूसरे पर अपनी पसन्दगी का आग्रह थोपने का प्रयत्न करते हैं- परिणाम ? क्लेश और झगड़ा! यदि पति-पत्नी के मन इस प्रकार अशान्त, असंतुष्ट रहे तो उनका मन धर्मआराधना में लगेगा नहीं । उनके भीतर आराधना करने का उल्लास भी रहेगा नहीं। कुलाचार से मन्दिर में जायेगा तो भी परमात्मा में उसका मन स्थिर बनेगा नहीं । जीवन नीरस बन जाने पर किसी धर्मआराधना में उसको आनन्द आयेगा नहीं । इतना ही नहीं, गृहस्थ धर्मों के पालन में भी असमर्थ बन जायेंगे । अपनेअपने कर्तव्यों का पालन नहीं करेंगे। इतना बहुत खराब प्रभाव सन्तानों पर गिरता है। बच्चे जब अपने माता-पिता के आपस के झगड़े देखते हैं, कटु शब्द सुनते हैं, दुर्व्यवहार देखते हैं... उनके कोमल मन पर कैसा बुरा असर पड़ता है, आप लोगों ने कभी सोचा है ? पति-पत्नी की वेश-भूषा के विषय में इतनी बातें क्यों कही जाती हैं ? क्योंकि वेश-भूषा के निमित्त आपस में कोई मतभेद खड़ा न हो । वेशश-भूषा के निमित्त आपस में झगड़ा न हो, तकरार न हो । जिस प्रकार ऊँच-नीच कुल के निमित्त विसंवाद नहीं होना चाहिए, जिस प्रकार खाने-पीने की बात को लेकर For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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