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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३३ १०२ आँख उठाकर उस नट के सामने देखा तक नहीं, वह अपना काम करता रहा। नट ने फिर से दरजी को बड़ी नम्रता से कहा : 'मेरे भैया, इस गाँव में दूसरा दरजी नहीं है.... दूसरे गाँव जाने में समय लगता है और शाम तक कोट तैयार नहीं हो सकता है, इसलिए कृपा करके इतना काम कर दो।' दरजी ने झुंझलाकर कहा : 'एक बार मैंने मना कर दिया न? मैं कोट नहीं बना सकता, मेरा सर मत खपाओ!' नट को दरजी की बात बहुत अखरी। उसने भी तैश में आकर कहा : 'देखो, तुम दरजी हो तो मैं भी नाटक करनेवाला हूँ.... मेरा अपमान करके सार नहीं निकालोगे| एक बार और प्रार्थना करता हूँ कि मेरा कोट सी दो।' दरजी गुस्से में आ गया, खड़ा हो गया और जोर-जोर से बोलने लगा : 'चला जा यहाँ से, तू नट है तो तेरे घर का, मैं तेरा कोट नहीं सीऊँगा, नहीं सीऊँगा.... तेरे से हो सो कर लेना.... क्या तू मुझे गाँव से निकाल देगा?' 'हाँ हाँ! मैं नट हूँ, मैं चाहूँ तो गाँव से भी निकाल दूँ!' नट ने भी गुस्से में आकर कह दिया। 'निकाल देना, तेरे से मैं डरता नहीं हूँ, चला जा यहाँ से....।' नट तो चला गया अपनी धर्मशाला में। दरजी कुछ समय बड़बड़ करता रहा। गाँव में एक ही दरजी था, सारे गाँव के कपड़े यही दरजी सीता था। वह अपनी महत्ता जानता था। लोगों की गरज को जानता था, इसलिए वह निर्भय था। 'मेरे बिना गाँव को चल ही नहीं सकता! गाँव को मेरी गरज है, मुझे गाँव की गरज नहीं है।' ऐसे विचारवाले लोग कभी न कभी ठोकर खाते हैं, कभी दुःखी होते हैं। संसार में सभी क्षेत्रों में ऐसा दिखाई देता है! अज्ञानी, मूर्ख और मूढ़ जीवों की ऐसी ही दशा होती है। घर में एक ही व्यक्ति कमाता है, यदि वह समझदार नहीं है तो क्या मानता है, जानते हो न? क्या बोलता है घरवालों के सामने? 'मैं कमाता हूँ तो घर चलता है, यह सारी सुख-सुविधा मैं हूँ तो मिलती है....तुम्हारे लिए इतनाइतना करता हूँ फिर भी तुम्हें मेरी कोई कद्र ही नहीं है...।' सभा में से : ऐसा तो हम लोग भी बोलते हैं! महाराजश्री : क्योंकि आपने मान लिया है कि आपके बिना सभी घरवाले भूखे मरेंगे! आपके बिना वे लोग बेघर बन जायेंगे! यह आपका मिथ्या अभिमान है। यह आपकी घोर अज्ञानता है। आप नहीं जानते कि सभी जीव अपन अपने For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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