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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- ३२ www.kobatirth.org विजातीय आकर्षण Attraction of Opposite Sex की समस्या आदि अनादि से परेशान कर रही है हर एक जीव को ! * दुन्यवो तमाम पुरुषार्थों का एक ही लक्ष्य हो जाता है कि पाँच इंद्रियों के विषयसुख प्राप्त करना ! नरकगति में जीवात्मा को मैथुन-वासना सुषुप्त रहती है, क्योंकि वहां पर मानसिक-शारीरिक वेदना हो असहनीय होती है । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ● 'मैं किसी के लिए कुछ कर रहा हूँ' इस तरह के कर्तृत्व के अभिमान में कभी भी खिंच मत जाना | सबसे पहले शादी व्यवस्था भगवान ऋषभदेव के समय में अस्तित्त्व में आई है। शादी में भी एक दूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बने रहने का आदर्श जीवंत रखना होगा। एक दूसरे के लिए परस्पर विश्वास, सहनशीलता, उदारता और गंभीरता का स्वीकार होना जरूरी है। प्रवचन : ३३ ९८ anur में महान श्रुतधर, पूज्य आचार्य श्री हरिभद्रसूरिजी ने स्वरचित 'धर्मबिंदु' ग्रंथ गृहस्थ जीवन का सामान्य धर्म बताया है । इसी ग्रन्थ में आगे गृहस्थ जीवन का विशेष धर्म और साधुधर्म भी बताया है। इस समय यहाँ गृहस्थ के सामान्य धर्म का विवेचन हो रहा है। For Private And Personal Use Only गृहस्थ जीवन पैसे के बिना नहीं चल सकता, इसलिए अर्थप्राप्ति का पुरुषार्थ करना अनिवार्य होता है । वह अर्थपुरुषार्थ किस प्रकार करना चाहिए, इस विषय पर विस्तार से आपको समझाया है। आज से अपन गृहस्थ जीवन के कामपुरुषार्थ पर विवेचन प्रारम्भ करेंगे। कामवासना : मनुष्य में साहजिक : मनुष्य धन इसलिए कमाता है कि वह पाँच इंद्रियों के विषयसुख प्राप्त कर सके और भोग-उपभोग कर सके । वैषयिक सुखों को भोगना ही कामपुरुषार्थ कहलाता है।
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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