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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३२ ९६ शायद आप सोचते होंगे कि 'उनको ऐसे अनर्थों का भोग होना पड़ा, हम लोगों को वैसे अनर्थ नहीं होंगे।' क्यों ऐसा ही सोचते हो न? कोई भी हो, जो मनुष्य बेईमानी करता है, उसको बुरा फल मिलता ही है। कुदरत के इन्साफ में कोई लाग-लपेट नहीं चलता है। अनीति नहीं करने का संकल्प कर लो : इसलिए कहता हूँ कि न्याय - नीति और प्रामाणिकता के मार्ग पर चलते रहो । न्याय-नीति से जो कुछ मिले, जितना मिले, उसमें संतोष करो। अपनी जीवन-व्यवस्था वैसी बना लो । यदि आप न्याययुक्त धनार्जन करेंगे तो आपका जीवन कष्टपूर्ण नहीं बनेगा। आप शान्ति से सादगीपूर्ण जीवन व्यतीत कर सकेंगे। जँचती है मेरी बात ? निर्णय करोगे कि 'अब हम अन्याय से धन नहीं कमायेंगे, बेईमानी कभी नहीं करेंगे।' ऐसा कुछ निर्णय तो कर ही लो । यदि आपके मन में शंका हो कि 'लड़के नहीं मानेंगे, लड़कों की माँ नहीं मानेगी.... क्योंकि अन्याय से प्राप्त होनेवाले हजारों रूपये का लोभ वे नहीं छोड़ सकेंगे....।' तो आप उनको मेरे पास ले आयें। मैं उनको समझाऊँगा, मुझे श्रद्धा है कि वे समझेंगे और अन्यायपूर्ण व्यवसाय - व्यवहार का त्याग करेंगे। पहले आप लोगों के दिमाग में यह बात जँचनी चाहिए । आज मैं सामान्य गृहस्थ धर्म के पहले धर्म 'न्यायसंपन्न वैभव' का विवेचन पूर्ण करता हूँ। सात दिनों से इस प्रथम धर्म पर विवेचन चला रहा है, आज आठवां दिन है। आठ दिनों में इस सामान्य धर्म के अनेक पहलुओं पर विचार किया है। आप अन्याय-अनीति का त्याग करना असंभव बात नहीं समझें। आप न्याय-नीतिपूर्ण व्यवसाय - व्यवहार को अशक्य नहीं समझें। सत्त्वशील मनुष्य के लिए कोई बात अशक्य नहीं होती है । चाहिए सही दिशा में सही पुरुषार्थ । यदि आप इस दिशा में ठोस पुरुषार्थ शुरू कर दें तो आपको सफलता मिलेगी। आज फिर से मैं कुछ बातें याद दिलाता हूँ : १. कोई भी खाद्य पदार्थ में या दवाइयों में मिलावट नहीं करें। २. वस्तु लेने-देने में गलत नाप-तौल नहीं रखें । ३. जैसा सेम्पल दिखायें, वैसा ही माल सप्लाई करें। ४. ज्यादा पैसा लेकर कम माल नहीं दें, पूरा माल दें। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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