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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९२ प्रवचन-३२ सभा में से : सरकार का तंत्र ही भ्रष्ट हो गया है.... सरकारी लोग भी तो हम लोगों के धंधे में सहयोगी बन जाते हैं। महाराजश्री : जब तक पुण्यकर्म का उदय होगा तब तक वे लोग सहयोगी बनेंगे, जब पुण्यकर्म समाप्त होगा, वे लोग ही आपके शत्रु बन जायेंगे। दूसरी बात यह है कि गलत धंधा करनेवाले हमेशा अशान्त बने रहते हैं, चिन्ताग्रस्त बने रहते हैं....इसलिए आजकल 'हार्टएटेक' जैसे हृदयरोग बढ़ गये हैं। निरन्तर चिन्ताओं से व्यग्र रहनेवालों को हृदय के रोग हो जाते हैं। गलत काम करनेवालों को भय बना रहता है और वे रोग के शिकार बन जाते हैं। क्या तुम्हें परलोक का विचार आता है? : मान लो कि आपको सरकार का भय नहीं लगता है, परन्तु परलोक का भय तो लगता है न? परलोक का विचार तो आता है न? 'इस जीवन में मैं अनीति, अन्याय, बेईमानी करता हूँ, इससे जो पापकर्म बंधते हैं, उन पापकर्मों का परलोक में जब उदय होगा तब कैसे-कैसे दुःख आयेंगे?' इस प्रकार परलोक-विषयक विचार आते हैं या नहीं? दुःखों का भय नहीं लगता है? सभा में से : इस जीवन में आनेवाले दुःखों का भय तो लगता है, परन्तु परलोक में आनेवाले दुःखों का भय नहीं लगता है। महाराजश्री : परलोक का विचार नहीं आता है तो फिर परलोक में आनेवाले दुःखों का विचार कहाँ से आयेगा? और परलोक का विचार ही नहीं आता है तो पापों से बचना असंभव है। क्योंकि पापों का फल विशेषकर आनेवाले जन्मों में मिलता है। वर्तमान जीवन में यदि पुण्यकर्मों का उदय होता है तो पापाचरण का बुरा फल यहाँ नहीं मिलता है। पाप करने से सुख का अनुभव होता है! फिर मनुष्य पापों का त्याग क्यों करेगा? 'पाप करने से पापकर्म बंधते हैं और जब वे पापकर्म उदय में आते हैं तब जीव को दुःख देते हैं, इस सिद्धान्त को समझे और माने तो ही पापाचरण से जीव छुटकारा पा सके। ___ अन्याय-अनीति से अर्थलाभ का होना निश्चित नहीं होता, अनर्थ तो अवश्य होगा ही। अनर्थ होने में कोई शंका नहीं, कोई संदेह नहीं। अनर्थ का अर्थ मात्र दरिद्रता या निर्धनता मत समझना, अनर्थ अनेक प्रकार के हो सकते हैं। धनप्राप्ति नहीं होना, राजदंड होना, बीमारियाँ आना, परिवार में किसी की मृत्यु होना, स्वयं की मौत होना, चोर-डाकुओं का आतंक होना.... वगैरह For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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