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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६ ८३ आपको अच्छा ही नहीं लगेगा! परमात्मप्रेम की जब हृदय में बाढ़ आ जाएगी, तब भौतिक वासनाएँ उस बाढ़ में बह जाएँगी। परमात्मा के प्रति ऐसी प्रीति, ऐसा प्रेम हो गया, फिर उनकी प्रतिमा, उनकी मूर्ति के दर्शन किए बिना चैन नहीं पड़ेगा, उनका पूजन किए बिना भोजन नहीं भाएगा! प्रेम, जड़ में भी चेतन का दर्शन करवाता है! प्रातःकाल में उठते ही आपको परमात्मा की स्मृति हो आएगी, आप आँखें मूंदकर उनके नामस्मरण में लीन हो जायेंगे | नाम जपते-जपते आपका हृदय उनकी मुखाकृति का दर्शन करने को उत्कंठित हो जाएगा। शारीरिक बाधाओं को दूर कर, शुद्ध वस्त्र पहनकर आप परमात्मा के मन्दिर की ओर चल पड़ेंगे। दूसरी तो कोई जगह नहीं कि जहाँ आप परमात्मा के दर्शन पा सको! आप यदि यह कहते हो कि 'मन्दिर में परमात्मा कहाँ होते हैं, वहाँ तो पाषाण की प्रतिमा होती है।' हाँ होती तो है पाषाण की प्रतिमा, पाषाण में परमात्मा के दर्शन करता है परमात्मा का पागल प्रेमी! यही तो प्रेम का परिचय है! लक्ष्मणजी के मृत कलेवर में श्रीराम जीवित लक्ष्मण को देखते थे। जैन रामायण के अनुसार छह महीने तक लक्ष्मण के मृतदेह को अपने कंधे पर लेकर श्रीराम अयोध्या में घूमे थे! क्या था यह? श्रीराम का लक्ष्मण पर प्रेम! प्रेम जड़ में चैतन्य देखता है, प्रेम से शून्य हृदय चैतन्य में भी जड़ का ही दर्शन करता है। ___ पाषाण में परमात्मा का दर्शन करनेवाला परमात्मप्रेमी ही जीवमात्र में सच्चिदानन्द आत्मा का दर्शन कर सकता है। जिस पाषाण ने परमात्मा का आकार पा लिया, परमात्मप्रेमी के लिए वह आराध्य, पूज्य और दर्शनीय बन जाता है। वह मनुष्य उस प्रतिमा के सहारे परमात्मा के पास पहुँच जाता है, परमात्मभाव में बह जाता है, हर्षाश्रु से भरीभरी आँखें डबडबा जाती हैं, हृदय रोमांचित हो जाता है और वाणी गद्गद् बन जाती है तथा भावलोक में परमात्मा साकार बन जाते हैं | परमात्मा के प्रेमी बन जाइये, फिर इसमें कोई तर्क-कुतर्क पैदा ही नहीं होंगे। प्रेम की परिभाषा को नहीं समझनेवाले लोग, प्रेमामृत की अनुभूति नहीं करनेवाले लोग मिथ्या तर्को के जाल में फँस जाते हैं। आपका हृदय यदि परमात्मप्रेम से भरा हुआ है, तो आप प्रातःकाल में परमात्मा के दर्शन करेंगे ही। आप जानते हैं महामनीषी शास्त्रकारों ने परमात्मदर्शन का काल भी प्रभात का ही बताया है! और प्रीति-अनुष्ठान में For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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