SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 89
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-६ ८१ अथवा कार में चुपचाप बैठे रहो-ड्राइवर पर भरोसा करो! क्या करना है, बोलो? सम्मूर्छिम धर्मक्रियाओं पर भी अभिमान : __ जिनवचन जिनग्रन्थों में, जिनआगमों में भरे पड़े हैं-आपको पढ़ना है? समझना है? तो आइए मेरे पास! हाँ, फिर घर और दुकान की ममता छोड़नी पड़ेगी! दिन-रात अध्ययन करना पड़ेगा! जिंदगी तक! यदि यह विचार नहीं हो, तो फिर जैसे आपको धर्मानुष्ठान करने को कहा जाय, वैसे करना मान लो! मानोगे? जिस समय, जिस स्थान में और जिन-जिन उपकरणों से धर्मक्रियाएँ करने की हैं, उसी प्रकार आदरपूर्वक करोगे धर्मक्रिया? धर्मक्रिया करने का कोई ढंग नहीं, कोई आदर नहीं, समय का खयाल नहीं, भावों की तो पूरी शून्यता...ऐसी सम्मूर्छिम क्रिया करते हो और उस पर अभिमान-अहंकार कितना? रुक जाओ, सावधान हो जाओ, अन्यथा भयंकर 'रिएक्शन' आएगा! गलती करने का अहसास है दिल में? अच्छा, यह बताओ कि आप लोग जिनवचनानुसार धर्म-आराधना नहीं करते हैं-यह ज्ञान भी है आपको? यदि ज्ञान है तो इस बात का दुःख है? आप सच्चे हृदय से इस बात का स्वीकार करते हो कि 'मैं जिनवचनानुसार धर्मक्रिया नहीं करता हूँ, भावशून्य और विवेकशून्य धर्मानुष्ठान कर रहा हूँ| जो मनुष्य जिनाज्ञानुसार धर्म करते हैं, वे धन्य हैं। मैं भी कब जिनवचनानुसार धर्मानुष्ठान करूँगा? मेरा वैसा सौभाग्य कब आएगा?' इस प्रकार सोचते हो क्या? गलत करते हो, उसको गलत भी नहीं मानते? फिर गलत करने का दुःख कैसे होगा? सही रूप से धर्मआराधना करनेवालों के प्रति बहुमान कैसे होगा? यथाविधि धर्मानुष्ठान करने का लक्ष ही नहीं, तो इस जीवन में आप धर्म पा ही नहीं सकते। हरिभद्रसूरिजी धर्मानुष्ठान 'यथोदितं' करने को कहते हैं, 'यथोदितं' करो तो ही धर्म, अन्यथा नहीं! जिनाज्ञा का अनादर मत करो : धर्म का स्वरूप बताया जा रहा है। धर्म के साथ मात्र इस वर्तमान जीवन का ही प्रश्न जुड़ा हुआ नहीं है, किंतु भविष्य का, जनम-जनम का सवाल जुड़ा हुआ है। मगर गफलत हो जाय, तो भविष्य के अनेक जन्म बिगड़ जायेंगे। मेरा ऐसा कोई आग्रह नहीं है कि आप आज ही आज सबके सब धर्मानुष्ठान करना प्रारम्भ कर दो। मेरा यह आग्रह है कि जो भी धर्मक्रिया करो, जिनाज्ञा For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy