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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७० प्रवचन-५ सु-मनुष्यत्व प्राप्त करती है। देवलोक के दिव्य सुखों के उपभोग में भी अनासक्ति का परिचय करानेवाली आत्मा का सत्त्व बहुत बढ़ जाता है। मनुष्यजीवन पाकर वह संयम के कठिन मार्ग पर चल पड़ती है। दुःख उसको भयभ्रान्त नहीं कर सकते, सुख उसको ललचा नहीं सकते। प्राप्त भौतिकशारीरिक सुखों का भी स्वेच्छा से त्याग करने का महान धर्मपुरुषार्थ, जिसको चारित्र्यधर्म कहते हैं, वह धर्मपुरुषार्थ कर्मों का क्षय करके जीव को शिव बना देता है। बन्धनग्रस्त को बन्धनमुक्त कर देता है। 'पारम्पर्येण साधकः' का यह अर्थ क्रमशः जीव को मोक्ष प्राप्त करवाता है। क्रमिक विकास करता हुआ, आध्यात्मिक विकास करता हुआ जीव परमपद को पा लेता है। इस ग्रन्थ में आचार्यदेवश्री हरिभद्रसूरिजी ने क्रमिक धर्मपुरुषार्थ बताया है। यदि मनुष्य इस क्रम से धर्मपुरुषार्थ करता चले, तो अवश्य वह अपने जीवन में धर्म का प्रभाव अनुभव किये बिना रहे नहीं। लेकिन लोग प्रायः क्रमिक धर्म-आराधना करते ही नहीं। ज्ञान ही नहीं है क्रमिक धर्मपुरुषार्थ का । जिसके मन में जो आया, वह कर लिया धर्म! जिसको जो अँचा, कर लिया धर्म! क्या स्कूल या कॉलेज में ऐसा चल सकता है? जिसको जो कोर्सअभ्यासक्रम करना हो, कर सकता है क्या? नहीं, वहाँ तो क्रमिक अभ्यास ही करना पड़ता है। पहली कक्षा में पढ़ते हो, पास हो तो दूसरी कक्षा में प्रवेश मिलेगा। दूसरी कक्षा में पढ़ते हो, पास हो, तब तीसरी कक्षा में प्रवेश मिले । शिक्षा के क्षेत्र में जैसे क्रमिक विकास मान्य किया है, वैसे धर्मक्षेत्र में भी क्रमिक विकास को मान्य करो और धर्म-आराधना करो, तो धर्म का अचिन्त्य प्रभाव अनुभव करोगे। धर्म-जहर उतारनेवाला परम मंत्र : ___ जैसे इस ग्रंथ में धर्म का प्रभाव बताया गया है वैसे दूसरे धर्मग्रन्थों में भी धर्म का प्रभाव और दृष्टि से बताया गया है। ‘पंचसूत्र' ग्रन्थ में धर्म के प्रभाव का वर्णन करते हुए आचार्यदेव ने बताया है कि 'धर्म सुर और असुरों से भी पूजित है। देव और दानव भी धर्म का आदर करते हैं। धर्म मोहान्धकार को मिटानेवाला सूर्य है। धर्मरूपी सूर्य का जीवन के गगन में उदय होते ही मोह का अन्धकार नष्ट हो जाता है। यह राग और द्वेष के जहर को उतारनेवाला परम मंत्र है! धर्म को परम मंत्र बताया गया है! राग-द्वेष के तीव्र जहर को उतारनेवाला मंत्र! धर्म सब प्रकार के कल्याणों का कारण है। कोई भी कार्य For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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